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सद्गुरु श्री मधुपरमहंस जी महाराज ने प्रवचनों में बताया— “भारत है विश्वगुरु, ऋग्वेद ने सबसे पहले कहा परमात्मा निराकार है”

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रखबंधु, 3 अगस्त: साहिब बंदगी के सद्गुरु श्री मधुपरमहंस जी महाराज ने आज रखबंधु में आयोजित सत्संग कार्यक्रम के दौरान अपने प्रवचनों से संगत को अध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करते हुए कहा कि संसार के जितने भी धर्म हैं, सभी आत्मा के विषय में एक समान मत रखते हैं और किसी में कोई भेदभाव नहीं है।

महाराज जी ने कहा कि भारत को यूँ ही विश्वगुरु नहीं कहा जाता। उन्होंने बताया कि संसार का प्राचीनतम ग्रंथ ऋग्वेद है, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि परमात्मा निराकार है। यही विचार बाद में अन्य धर्मों ने भी अपनाया। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि मुसलमान ‘बेचूना खुदा’ कहते हैं—यानी निराकार ईश्वर।

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इतिहास का उल्लेख करते हुए उन्होंने बताया कि वैज्ञानिक न्यूटन से पहले कोपरनिकस ने धरती के घूमने की बात कही थी, पर उसे सज़ा दी गई और कालांतर में न्यूटन को श्रेय मिला। ठीक उसी प्रकार वेदों का ज्ञान भी सर्वप्रथम था, पर अनेक पंथों ने उसी ज्ञान को बाद में अपनाया।

उन्होंने बताया कि भारत वह भूमि है जहाँ सबसे पहले मानव का वास हुआ। सभी अवतार, ऋषि और देवता यहीं जन्मे। अमेरिका, अफ्रीका, रूस जैसे स्थानों पर पहले कोई नहीं रहता था। अमेरिका की खोज भी मात्र 400 वर्ष पूर्व हुई थी।

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सद्गुरु ने कहा कि ऋग्वेद ने सबसे पहले परमात्मा के निराकार स्वरूप की बात कही, लेकिन वहीं यह भी कहा कि “यहाँ तक ही नहीं, इससे आगे भी कुछ है।” संतों ने उसी आगे की बात को स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि कबीर साहिब अमर लोक से आए थे और उन्होंने सत्य का संदेश दिया। कबीर साहिब की अलौकिकता का वर्णन करते हुए उन्होंने दादू दयाल की कथा सुनाई जिसमें एक वृद्ध ने बताया कि कबीर साहिब के शरीर के आर-पार सब कुछ दिखता था।

उन्होंने महात्मा गांधी का भी उल्लेख करते हुए कहा कि गांधी जी की माता कबीर साहिब की शिष्या थीं, और गांधी जी का विचार भी कबीर की वाणी से जुड़ा हुआ था। कई पंथ कबीर साहिब की वाणी को अपना कर उसमें परिवर्तन कर उसे अपने नाम से प्रचारित करते हैं।

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अपने जीवन के प्रसंग साझा करते हुए सद्गुरु जी ने बताया कि कैसे उनके बारे में भी अफवाहें फैलाई गईं कि वे 1971 की जंग में शहीद हो गए हैं या विदेश में विवाह कर वहीं बस गए हैं। उन्होंने बताया कि वे उस समय फौज में थे और तनख्वाह से कटौती कर उनके पिता को सीधे भेजी जाती थी।

उन्होंने कहा कि समाज में तरह-तरह की बातें होती हैं, यह चलता रहा है और चलता रहेगा। लेकिन सत्य वही है जिसे संतों ने अनुभव से जाना और बताया।

 

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