किसानों से डरी मोदी सरकार अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों की
दिला रही याद
अनुज श्रीवास्तव/रंजीत सिन्हा
बिहार/पटना। पूर्व सांसद एवं राष्ट्रीय चेयरमैन असंगठित कामगार एवं कर्मचारी कांग्रेस (केकेसी) एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता कांग्रेस डॉ उदित राज ने सदाकत आश्रम में आयोजित प्रेस वार्ता में कहा है कि केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनने पर स्वामीनाथन कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार किसानों को फसल पर न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी दी जाएगी। इससे 15 करोड़ किसान परिवारों की समृद्धि सुनिश्चित होगी; न्याय के पथ पर यह कांग्रेस की पहली गारंटी है।
उन्होंने कहा कि हम शांतिपूर्वक दिल्ली कूच कर रहे किसानों को रोकने के लिए मोदी सरकार द्वारा रास्ते रोकने और बल प्रयोग की कड़ी भर्त्सना करते हैं। हमारा सीधा आरोप है कि केंद्र सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के मुद्दे पर किसानों से झूठ बोला एवं वादाखिलाफ़ी की, जिसके लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को देश से माफी माँगनी चाहिए।
मोदी सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था को तबाह कर दिया।
दस साल के कार्यकाल में मोदी सरकार ने सिर्फ देश की अर्थव्यवस्था को बर्बाद करने का काम किया है। मोदी सरकार का पिछले दस साल का कार्यकाल देश पर अन्याय काल रहा। आज महंगाई आसमान छू रही है और बेरोजगारी चरम पर है। हर साल दो करोड़ नौकरियों के वादे के विपरीत केंद्रीय सरकार के कर्मचारियों की संख्या घटी है, क़रीब 30 लाख सरकारी पद खाली पड़े हैं। केंद्र सरकार के कर्मचारियों की संख्या यूपीए सरकार में 33,28,027 थी, जो आज मोदी सरकार में घटकर 31,67,143 रह गई है। कोरोना महामारी आने से पहले ही बेरोजगारी 45 साल के उच्चतम स्तर पर दर्ज की गई थी। लोगों की आय में बढ़ोतरी नहीं हो रही है, जिसका नतीजा है कि 2022-23 में घरेलू बचत को खर्च कर जीवनयापन कर रहे हैं और घरेलू बचत घटकर 50 साल के निचले स्तर पर आ गई। अमेरिकी डॉलर के मुक़ाबले भारतीय रुपये का मूल्य रिकॉर्ड निचले स्तर पर गिर गया है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का सकल एनपीए लगभग सात गुना बढ़ गया है। यूपीए सरकर में 2004-2014 के बीच यह आठ लाख करोड़ रूपये था, मोदी सरकार में 2014-2023 के बीच यह साढ़े पचपन लाख करोड़ रूपये हो गया है। यही हाल बट्टे खाते में डाले गए बैंक ऋणों का भी है। यूपीए सरकार में 2.2 लाख करोड़ रूपये के बैंक ऋण माफ़ किए गए थे, जो मोदी सरकार में 14.56 लाख करोड़ रूपये हो गए।
भाजपा द्वारा जीडीपी के आंकड़ों में फेरबदल के बावजूद यूपीए कार्यकाल में वृद्धि दर ज़्यादा तेज थी। 2004-2014 के बीच औसत वृद्धि दर 6.7 प्रतिशत थी, जबकि मोदी सरकार के कार्यकाल में यह 2014-2024 के बीच 5.9 प्रतिशत थी। नोटबंदी और ख़राब जीएसटी कार्यान्वयन जैसी गलत आर्थिक नीतियों के परिणामस्वरूप 2016 से जीडीपी वृद्धि में लगातार गिरावट आई और 2019 में कोरोना महामारी से पहले ही वृद्धि दर गिरकर 3.9 प्रतिशत पर आ गई। मध्यम वर्ग और ग़रीबों द्वारा किए जाने वाले उपभोग में कमी आई। कम खपत का सीधा मतलब आय का न बढ़ना है। निजी कॉर्पोरेट निवेश यूपीए के समय की तुलना में बहुत कम है। भारत की जीडीपी के प्रतिशत के रूप में सकल एफडीआई प्रवाह 2023-24 की पहली छमाही में घटकर केवल एक प्रतिशत रह गया, जबकि शुद्ध एफडीआई गिरकर 0.6 प्रतिशत हो गया। पिछले चार वर्षों के दौरान 33 हजार से अधिक एमएसएमई बंद हो गए हैं, छोटे और मध्यम उद्यमों का पंजीकरण तेजी से कम हुआ है। सार्वजनिक ऋण 2014 में 58.6 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 2023 में 173.3 लाख करोड़ रुपये हो गया। यूपीए कार्यकाल के अंतिम वर्ष में शिक्षा बजट सकल घरेलू उत्पाद का 4.6 प्रतिशत था, जो अब घटकर जीडीपी का मात्र 2.9 प्रतिशत रह गया है। भूख और कुपोषण में वृद्धि बेहद चिंता का विषय है; ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत 125 देशों में से 111 वें स्थान पर आ गया है।
यूपीए सरकार में पेट्रोल की कीमत 71 रुपये प्रति लीटर थी, वहीं कच्चे तेल के सस्ते हो जाने के बावजूद मोदी सरकार में पेट्रोल की कीमत 96 रुपये प्रति लीटर के पार है। यूपीए सरकार में डीजल की कीमत 57 रुपये प्रति लीटर थी, वह आज 90 रुपये पर पहुंच गई है। यूपीए सरकार में एलपीजी सिलेंडर की कीमत 400 रुपये थी आज सिलेंडर की कीमत एक हजार रूपये के पास है। आज किसान की औसत आय मात्र 27 रुपये प्रतिदिन है। किसान उर्वरक, कीटनाशक व कृषि उपकरण पर जीएसटी और महंगे डीजल का बोझ झेल रहे हैं।
तीन काले कानून वापस लेते समय मोदी सरकार ने किसानों से एमएसपी के लिए कानून बनाने का जो वादा किया था, जिसे पूरा नहीं किया। आज किसान अपने हकों के लिए आंदोलन करना चाह रहे हैं तो सरकार उन्हें दमनपूर्वक रोक रही है। भाजपा की केंद्र सरकार तथा हरियाणा-राजस्थान-उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकारों ने देश की राजधानी दिल्ली को इस प्रकार पुलिस छावनी में तब्दील कर रखा है, जैसे कि किसी दुश्मन ने दिल्ली की सत्ता पर हमला बोल दिया हो। मोदी सरकार का यह रवैया आंदोलन को दबाने के लिए अंग्रेजी शासन द्वारा अपनाए जाने वाली दमनकारी नीतियों की याद दिला रहा है। हमारा सवाल है कि देश के अन्नदाता प्रधानमंत्री और देश की सरकार से न्याय न मांगे, तो कहां जाएं। जब किसान आंदोलन पूरी तरह शांतिप्रिय है तो फिर किसान की राह में कीलें और कंटीली तारें क्यों बिछाई गयी हैं।