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निर्जला एकादशी

(शैली: सरल, साफ और धार्मिक भावनाओं से जुड़ा हुआ)

हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। हर माह दो एकादशी आती हैं—एक कृष्ण पक्ष में और दूसरी शुक्ल पक्ष में। परंतु इनमें से निर्जला एकादशी सबसे श्रेष्ठ, कठिन और पुण्यदायी मानी जाती है। यह ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को आती है और इसे भीम एकादशी भी कहा जाता है।

निर्जला एकादशी का महत्व:
निर्जला एकादशी का शाब्दिक अर्थ है – “बिना जल के एकादशी।” इस दिन व्रतधारी पूरे दिन और रात्रि तक जल की एक बूंद भी ग्रहण नहीं करते। यह उपवास कठोर तो है, लेकिन इसका फल वर्ष भर की 24 एकादशियों के व्रत के बराबर माना गया है।

पौराणिक मान्यता के अनुसार, महाभारत काल में भीमसेन को भोजन का बहुत शौक था, जिससे वह हर एकादशी का व्रत नहीं रख पाते थे। तब महर्षि व्यास ने उन्हें ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी को निर्जल व्रत रखने की सलाह दी और कहा कि इससे उन्हें बाकी सभी एकादशियों के व्रत का पुण्य मिलेगा। तभी से यह व्रत “भीमसेन एकादशी” के नाम से भी प्रसिद्ध हुआ।

व्रत की विधि:

1. व्रत की पूर्व रात्रि को सात्विक भोजन करके ब्रह्मचर्य का पालन करें।

2. एकादशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और भगवान विष्णु की पूजा करें।

3. दिनभर जल, अन्न या फल कुछ भी न लें। केवल भगवान के ध्यान में लीन रहें।

4. रात्रि में भगवान विष्णु की कथा, भजन-कीर्तन करें।

5. द्वादशी के दिन सूर्योदय के बाद व्रत का पारण करें—अर्थात ब्राह्मणों को भोजन करवाकर स्वयं भोजन ग्रहण करें।

आध्यात्मिक लाभ:

यह व्रत जीवन के पापों को नष्ट करने वाला माना गया है।

आत्मा को शुद्धि की ओर ले जाने वाला यह दिन मोक्षदायी कहा गया है।

इस दिन व्रत रखने से विशेषकर जलदान, अन्नदान, वस्त्रदान का बहुत पुण्य फल मिलता है।

यह व्रत शरीर को संयम सिखाता है और मन को शांति प्रदान करता है।

उपसंहार:
निर्जला एकादशी केवल व्रत नहीं, बल्कि आत्म-संयम, श्रद्धा और भक्ति का पर्व है। यह हमें त्याग, सहनशीलता और भगवान के प्रति अटूट विश्वास की सीख देता है। जो व्यक्ति इसे श्रद्धा से करता है, उसे असीम पुण्य और मोक्ष की प्राप्ति होती है। हमें इस पावन अवसर पर अपने जीवन को सत्कर्मों से भरने का संकल्प लेना चाहिए।

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