
ख़ून अपना हो या पराया हो
नस्ल-ए-आदम का ख़ून है आख़िर ,
जंग मशरिक़ में हो कि मग़रिब में
अम्न-ए-आलम का ख़ून है आख़िर ।
बम घरों पर गिरें कि सरहद पर ,
रूह-ए-तामीर ज़ख़्म खाती है ;
खेत अपने जलें कि औरों के ,
ज़ीस्त फ़ाक़ों से तिलमिलाती है ।
टैंक आगे बढ़ें कि पिछे हटें ,
कोख धरती की बाँझ होती है ;
फ़त्ह का जश्न हो कि हार का सोग ,
ज़िंदगी मय्यतों पे रोती है ।
जंग तो ख़ुद ही एक मसअला है ,
जंग क्या मसअलों का हल देगी ;
आग और ख़ून आज बख़्शेगी ,
भूक और एहतियाज कल देगी ।
इस लिए ऐ शरीफ़ इंसानो ,
जंग टलती रहे तो बेहतर है ;
आप और हम सभी के आँगन में ,
शमा जलती रहे तो बेहतर है ।
(साहिर)
अपील
आओ , युद्ध विराम का स्वागत करते हुए हालात पर विचार करें और होने वाली भारत-पाकिस्तान वार्ता में मूल समस्या के समाधान हेतु बोलें ।
22 अप्रैल 2025 को पहलगांव में मिलिटेंट्स द्वारा की गई 26 पर्यटकों की निर्मम हत्याएं दु:खद एवं अत्यन्त निंदनीय हैं । प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा अभी तक उन मिलिटेंट्स को पहचान पाने , पकड़ पाने और सजा दे पाने में नाकाम रहना और भी ज्यादा चिंताजनक है । पीएम नरेंद्र मोदी द्वारा स्वयं बनाई कसौटी पर इनकी ही सरकार को परखा जाए तो हम पाते हैं कि इन मिलिटेंट्स को ढूंढने , सीमा पार की घुसपैठ रोकने हेतु सीमा सुरक्षा करने सहित अंदरूनी तौर पर नागरिकों को सुरक्षा दे पाने में ये बुरी तरह असफल रहे हैं । इसी कसौटी पर सवाल यह भी उठता है कि नोटबंदी करते समय और संवैधानिक अनुच्छेद 370 व 35A तोड़ते समय आतंकवाद की कमर तोड़ देने की घोषणा कर दी गई थी, तो फिर अब 22 अप्रैल को कश्मीर और 15 मई को कश्मीर और मणिपुर में दसियों आतंकवादियों के समाचार कैसे आ रहे हैं ?? पहलगांव में बॉर्डर से इतनी दूर यह हादसा कैसे हो गया ?? क्या हुआ लोगों को गुमराह करने वाले उन दावों का ?? अपनी असफलताओं से ध्यान हटाने के लिए मिलिटेंट्स और पाकिस्तान को सबक सिखाने के नाम पर 7 से 10 अप्रैल 2025 को पूरी मानव प्रजाति के अस्तित्व को संकट में डालते हुए पाकिस्तान से युद्ध छेड़ देना और फिर उन हत्यारे मिलिटेंट्स को जिंदा या मुर्दा हासिल किए (हासिल करने का वादा लिए) बिना युद्ध विराम के घटनाक्रमों ने हम भारतीयों सहित दुनियां को झकझोर दिया है ।
ज्ञातव्य हो कि कश्मीर में जारी मिलिटेंसी का मूल कारण कश्मीर समस्या है , जो देश की आजादी के बाद कश्मीर के भारत के साथ आने के समय से ही बनी हुई है । तमाम तरह के आधारहीन दावों के बावजूद सरकार मूल समस्या को हल करने में पूर्णतया असफल रही है । अब भी यदि इस समस्या के साथ साथ देश की राज व्यवस्था में संघवाद (फेडरलिज्म) के खात्मे और शक्तियों के अति केंद्रीयकरण के प्रति नाराज़गी के कारण पनपे चरमपंथ के कारण जब किसी मिलिटेंट द्वारा आम नागरिकों को कत्ल कर दिया जाए , तो क्या फौरी तौर पर उन मिलिटेंट्स की पहचान कर उनको पकड़ने और सीमा पार कर आने-जाने में रोकने वाली व्यवस्था बनाने की बजाए देश को युद्ध में झौंक देना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार की समझदारी है ?? उजड़े सिंदूर का बदला लेने के नाम पर दोनों तरफ कितने ही और लोगों को मरवा देना , और ज्यादा सिंदूर उजाड़ देना , बद्हाली में जी रहे नागरिकों के आर्थिक , मानवीय और प्राकृतिक संसाधनों को बर्बादी की ओर ले जाना कत्तई समझदारी नहीं हो सकती । जम्मू-कश्मीर में मिलिटेंसी या आतंकवाद की बुनियाद कश्मीर समस्या के हल की ओर रत्तीभर भी आगे न बढ़ पाना हमारे राष्ट्रीय नेतृत्व की असफलताएं आत्मघाती हैं ।
भारत और पाकिस्तान के बजाए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा व्यापार न करने की चेतावनी (धमकी) देकर करवाया युद्ध विराम का ऐलान , जिसे पाकिस्तान सरकार के साथ-साथ हमारी सरकार द्वारा भी स्वीकार कर युद्ध विराम कर लेना तो हमारे प्रधानमंत्री के फैसले लेने की हैसियत जाहिर करता है । यह फैसला हमारी संप्रभु शक्ति को ही समर्पण की ओर ले जाता है । हालांकि 15 मई 2025 को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने यू टर्न लेते हुए युद्ध विराम में मदद करने की बात कही है , लेकिन भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके किसी दावे का प्रतिकार नहीं किया और ना ही अपने द्वारा पाक में रहने वाले किसी आतंकी या उसके सरगना को भारत को सौंपने का वादा ही प्राप्त कर पाए । यह घटनाक्रम ज़ाहिर करता है कि हमारा नेतृत्व स्वत: बातचीत करने की परिपक्वता में नहीं पहुंचा । इसका खामियाजा यह हो सकता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प की मध्यस्थता (रोटी के लिए लड़ती दो बिल्लियों का एक बंदर द्वारा फैसला करवाने के नाम पर रोटी हड़पने की कहानी की तरह) इस विवाद में अमेरिका फर्स्ट की अपनी नीति के मुताबिक पहले अपना हित साधे , जिसका सीधा नुकसान भारत और पाकिस्तान को ही होना है । चूंकि कुल मिला कर देश और मानवता को युद्ध में ले जाने का फैसला मोदी सरकार का मानवीय समाज और प्रकृति को तबाही की ओर ले जाने वाला फैसला था , इसलिए इन तमाम उपरोक्त बातों के बावजूद भी युद्ध विराम स्वागत योग्य है ।
असल में नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा देश को युद्ध में धकेलने की यह मानव एवं प्रकृति विरोधी कारगुज़ारी आतंकवाद , भुखमरी , गरीबी , बेघरबारी , बेरोजगारी , खेती-किसानी की परेशानियों , गुणवत्तापूर्ण शिक्षा स्वास्थ्य तक सबकी पहुंच से दूर होने , अपर्याप्त स्वच्छ पेयजल प्रबंध , अपर्याप्त सार्वजनिक परिवहन और मार्गों जैसी बुनियादी समस्याओं के साथ-साथ संघवाद (फेडरलिज्म) की बजाए राज शक्तियों के अति केंद्रीयकरण के रुझान से पैदा हो रहे लोकतांत्रिक संस्थाओं , अधिकारों और प्रतिमानों के दमन , सुप्रीम कोर्ट की राय के विपरीत स्थानीय निकाय चुनावों के स्थगन (राजस्थान में) , संवैधानिक संघवाद के दमन के खिलाफ़ विपक्षी मुख्यमंत्रियों का मोदी सरकार के खिलाफ़ चेन्नई में एकजुट हो जाने , हालिया अमेरिका यात्रा के परिदृश्य , आर्थिक-जातिगत गणना पर यू टर्न , केन्द्र के दुराश्यों को पूरा करते राज्यपालों और राष्ट्रपति पर सुप्रीम कोर्ट का प्रहार तथा कॉरपोरेट लूट आदि मोदी सरकार की किरकिरी कराने वाली एक लम्बी फेहरिस्त से ध्यान हटाने की कारगुज़ारी है । लेकिन देश के नागरिक आज इस स्तर की जागरूकता में पहुंच चुके हैं कि पहलगांव की दु:खद घटना के बाद सत्ताधीशों , उनके सांगठनिक नेटवर्क और गोदी मीडिया द्वारा उठाए सांप्रदायिक उन्माद और युद्धोन्माद का उफान बैठते ही मूल सवाल प्रकट रूप में मुंह बाए मजबूती से खड़े दिखाई दे रहे हैं ।
ज्ञातव्य हो कि युद्ध किसी समस्या का हल नहीं बल्कि अपने आप में ही एक बड़ी समस्या है । युद्धों से समस्याएं हल होती तो पिछले चार युद्धों से कश्मीर समस्या हल होकर अब तक कश्मीर के तो तीनों हिस्से क्रमशः चीन अधिकृत कश्मीर , पाक अधिकृत कश्मीर और जम्मू-कश्मीर (मय लद्दाख) एक हो लिए होते । ध्यान रहे कि कश्मीर के एक बड़ा हिस्सा चीन के कब्जे में भी है, जिसे लेने के लिए हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह एक बयान तक देने की भी हिम्मत नहीं करते तथा इस कब्जे के अलावा हाल ही में चीन द्वारा हड़पी लद्दाख की जमीन पर भी चुप्पी साधे बैठे है । इस बात को उठाने के लिए लद्दाख के जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक लोगों की बड़ी संख्या के साथ पैदल यात्रा लेकर हाल ही में दिल्ली आए थे , लेकिन दिल्ली ने उनसे कोई तर्कसंगत बात ही नहीं की । उक्त ज्वलंत सवालों पर भारत की जनता जवाब मांगती है ।
अन्ततः सारी बातों का सार यह है कि
युद्ध मानवता के प्रति गुनाह है और युद्ध विराम का स्वागत है ।
युद्ध प्रकृति और मानवता के प्रति गुनाह है । एक दूसरे देश पर हमले में जब बहुत सारे लोग मारे जाएंगे , तब एक दिन दोनों देशों के युद्धोंमांद फैलाने में लगे नेता बातचीत की मेज पर बैठेंगे और समझौते करते , हाथ मिलाते तस्वीरें खिंचवाएंगे (या अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की तरह विश्व शक्तियों द्वारा सहमत करवा दिए जाएंगे) अर्थात् मसले बातचीत से हल करने का ऐलान करेंगे (अभी 10 मई 2025 को भारत और पाकिस्तान के भी किसी निष्पक्ष/न्यूट्रल जगह बैठ कर बात करने की सहमति युद्ध विराम में आ चुकी है) , तब एक-दूसरे द्वारा मारे गए सैनिक और आम लोग , उजाड़े गए सिंदूर , अनाथ किए गए बच्चे , छीने गए मांओं के लाल और भंग हुए अंग लौटाए नहीं जा सकेंगे । तो फिर ये नेता पहले ही अपने-अपने हजारों लोगों को युद्ध के हमलों में मारे जाने से पहले बातचीत की मेज पर क्यों नहीं जाते ? …!!
भारत और पाकिस्तान के बीच पूर्व में चार युद्धों से समस्या हल नहीं हुई । आज तो युद्ध की तकनीक पहले से बहुत अधिक मानव और प्रकृति घाती हो चुकी है । भारत और पाकिस्तान के राष्ट्रीय नेतृत्व को दोनों देशों के बीच मौजूद वास्तविक समस्या के स्थाई समाधान पर कार्य पहल लेनी चाहिए । हम मानवता के पक्ष में युद्ध विरोधी हैं और दोनों देशों के नेतृत्व से शान्ति कायम करके मसले बातचीत से हल करने की मांग करते हैं ।
अमेरिकी प्रयास से आए युद्ध विराम के समाचार का हम स्वागत करते हैं और दोनों देशों सहित विश्व नेतृत्व से हमारे दोनों देशों के बीच साढ़े सात दशकों से पसरी पड़ी कश्मीर समस्या का त्रिपक्षीय बातचीत से भारत-पाक महासंघ के दायरे में स्थाई समाधान करने का निवेदन करते है ।
इस अवसर पर हम मांग करते हैं कि :
1. पहलगांव और पुलवामा हमलों की एक विश्व स्तरीय निष्पक्ष जांच एजेंसी से जॉच करवा कर हमलों के दोषियों और उनके आकाओं की पहचान की जाए । जनता में यह पहचान जाहिर की जाए ।
2. इन दोषियों को गिरफ़्तार कर कानूनी सजा दी जाए ।
3. आतंकवाद और आतंकवादीयों के सीमा पार से आने और हमले कर सीमा पार जाने का कहने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सीमाओं की सुरक्षा सहित मूल समस्या हल करने में अपनी नाकामी स्वीकार कर त्याग पत्र दे ।
4. कश्मीर की पूर्व संवैधानिक स्थित बहाल करते हुए उसे पुनः पूर्ण राज्य का दर्ज़ा लौटाया जाए ।
5. कश्मीर समस्या को भारत , पाक और कश्मीरियों की भागीदारी वाली त्रिपक्षीय बातचीत से हल करो ।
6. भारत-पाक महासंघ के दायरे में लेकर कश्मीर समस्या हल करो , इससे दोनों देशों में करीब आठ दशकों से तनाव का कारण बना कश्मीर इनके बीच शांति का पुल बनेगा और विकास के नए रास्ते खोलेगा ।
7. भारत-पाक महासंघ या यूरोप की तर्ज पर सार्क देशों के महासंघ को कायम करके रक्षा खर्च की कटौती की जाए , जो क्षेत्र के लोगों की बुनियादी सुविधाओं यथा घर , रोटी , रोजगार , खेती , शिक्षा , चिकित्सा सुधारों में लगाया जाए ।
8. देश को युद्ध में झौंकने के दोषियों को तथा कुप्रचार में रत् संगठित नेटवर्क व पीत पत्रकारिता के जरिए युद्धोन्माद पैदा करने वाले गोदी मीडिया को युद्ध अपराधी घोषित कर मुकदमें चलाए जाएं ।
9. शान्ति की स्थापना और बातचीत से मसलों के हल की प्राथमिकता अपनाई जाए ।
10. भारत पाकिस्तान के बीच जारी व्यापार को सुगम और कम खर्चीला बनाने के लिए बाघा , हिंदुमलकोट सहित जगह जगह बॉर्डर खोले जाएं ।
(ज्ञातव्य हो कि दोनों देशों के बीच अब भी व्यापार जारी है । ज्यादा माल समुद्री जहाजों के जरिए लाते और ले जाते हैं, जबकि सड़क मार्ग हमसे चिपते और सस्ते हैं ।)
आओ , बुलन्द करे
युद्धों का खर्चा बन्द करो ,
घर-रोटी-रोज़गार का प्रबंध करो ।
दिनांक : 16.05.2025 , शुक्रवार ।
– भवदीय ,
राजेश भारत , 9413229757
चुन्नी लाल पूनिया , 9878931334
इंटरनेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्लेटफॉर्म (IDP)
कार्यालय : 1-A , पब्लिक पार्क , कोतवाली & पेट्रोल पम्प के सामने , श्रीगंगानगर (राज.)
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आई डी खजुरीया
रेशनल हम्यूनिसट ।