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“क्रिप्टोकरेंसी: डिजिटल सपने की आड़ में सदी का सबसे बड़ा जालसाज़ी षड्यंत्र?”

“हिमाचल से लेकर दुबई तक: क्रिप्टो गैंग की काली साज़िश और ISI का नेटवर्किंग जाल”

लेखक: रविंद्र आर्य
(राष्ट्रीय सुरक्षा और डिजिटल प्रोपेगेंडा पर स्वतंत्र खोजपरक लेखक)

नई दिल्ली |

क्रिप्टोकरेंसी को आमतौर पर वित्तीय स्वतंत्रता, निवेश और तकनीकी नवाचार का प्रतीक माना जाता है। लेकिन भारत में सुरक्षा एजेंसियों की हालिया जांचों से क्रिप्टो बूम का एक कहीं अधिक खतरनाक चेहरा सामने आया है—ऐसा चेहरा जो युवा भारतीयों को अंतरराष्ट्रीय जासूसी, धोखाधड़ी और डिजिटल दासता के जाल में फंसा रहा है।

प्रमाण बताते हैं कि “क्रिप्टो टास्क” और निवेश के नाम पर एक संगठित साइबर जासूसी अभियान—जो दुबई, कनाडा और पाकिस्तान में जड़ें रखता है—भारत की सबसे संवेदनशील संस्थाओं को निशाना बना रहा है: इसकी सेना, पुलिस,  रेलवे और छावनियाँ।

यह केवल मनी लॉन्ड्रिंग या ऑनलाइन धोखाधड़ी नहीं है। यह भारत की संप्रभुता पर एक चुपचाप चल रही साइबर जंग है। सिर्फ वित्तीय धोखाधड़ी नहीं: कैसे ISI-प्रायोजित दुबई-कनाडा आधारित क्रिप्टो सिंडिकेट भारतीय युवाओं को सेना के ठिकानों, पुलिस, रेलवे और छावनियों की जासूसी के लिए फंसा रहे हैं।

क्रिप्टो टास्क बन गए जासूसी मिशन

हाल ही में दिल्ली, गुजरात और उत्तर प्रदेश में गिरफ्तार किए गए कई युवाओं ने चौंकाने वाले खुलासे किए। शुरुआत में उन्हें ऑनलाइन वीडियो लाइक करने, लिंक शेयर करने, स्क्रीनशॉट भेजने जैसे छोटे-मोटे टास्क के बदले आसान कमाई का झांसा दिया गया। धीरे-धीरे उन्हें रेलवे जंक्शनों, पुलों, सेना के ठिकानों और सैन्य वाहनों की तस्वीरें और वीडियो—उनके लोकेशन और नंबर प्लेट समेत—भेजने को कहा गया।

यह सब एक मासूम “टास्क-बेस्ड इनकम मॉडल” की तरह शुरू हुआ, लेकिन अंततः ये हाई-सिक्योरिटी जोन की जासूसी में बदल गया।

जांचकर्ताओं का मानना है कि यह डाटा दुबई और पाकिस्तान में स्थित क्लाउड सर्वर पर भेजा गया, जहाँ इसे शत्रुतापूर्ण विदेशी एजेंसियों ने सामरिक उद्देश्यों के लिए एकत्रित किया।

डिजिटल क्रांति या सुनियोजित आपराधिक जाल?

क्रिप्टोकरेंसी को आधुनिक युग की डिजिटल क्रांति कहा गया, जिसमें भविष्य की मुद्रा का वादा किया गया। परंतु वर्तमान में यह एक ऐसे उपकरण के रूप में उभर कर सामने आ रहा है जिसका दुरुपयोग करके देश की आर्थिक व्यवस्था, सुरक्षा एजेंसियों, और आम नागरिकों को निशाना बनाया जा रहा है। भारत के पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश और पंजाब जैसे सीमावर्ती क्षेत्रों में क्रिप्टो के नाम पर हज़ारों करोड़ के फर्जीवाड़े सामने आए हैं, जिनके तार कनाडा, दुबई, और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI तक जुड़ते नजर आते हैं।

हिमाचल में उठा मुद्दा, उजागर हुई करोड़ों की ठगी

हिमाचल प्रदेश विधानसभा में कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में एक निर्दलीय विधायक होशियार सिंह ने क्रिप्टोकरेंसी के घोटाले को ज़ोर-शोर से उठाया। इसके बाद राज्य सरकार ने SIT का गठन किया और जैसे ही जांच की परतें खुलीं, चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। पता चला कि प्रदेश में सक्रिय लोकल नेटवर्किंग ग्रुप पूरी तरह फर्जी थे, जो आम जनता को दुगना रिटर्न देने का झांसा देकर सरकारी बैंक प्रणाली से पैसा निकालने पर मजबूर कर रहे थे।

सेना और पुलिस के कर्मियों को बनाया गया निशाना

सबसे गंभीर पहलू यह है कि क्रिप्टो नेटवर्किंग स्कीमों का जाल सीमावर्ती क्षेत्रों जैसे पठानकोट केंट, पालमपुर, और जम्मू के मिलिट्री क्षेत्र में फैला हुआ था। इन जगहों पर रहने वाले आर्मी जवान, रिटायर्ड कर्मचारी और पुलिसकर्मी ही टारगेट बनाए गए। इनके अंदर यह विश्वास भरा गया कि यह भविष्य की तकनीक है और इसमें निवेश करना देश-हितकारी निर्णय है। परंतु यह एक रणनीति हो सकती है देश की रक्षा व्यवस्था को कमजोर करने की।

दुबई और कनाडा से ऑपरेटिव गिरोह: भारत को आर्थिक रूप से खोखला करने की साजिश

जांच में यह भी सामने आया है कि अधिकतर ऐसे गिरोह दुबई और कनाडा से संचालित हो रहे हैं। भारत से लोगों का पैसा निकाल कर विदेश भेजा जा रहा है और फिर वही पैसा क्रिप्टो के जरिए मनी लॉन्ड्रिंग में इस्तेमाल हो रहा है। ऐसे कई गिरोहों ने हिमाचल और पंजाब के लोगों से करोड़ों की ठगी कर ली और फिर भारत से भाग निकले।

ISI की संदिग्ध भूमिका: आतंकवाद और जासूसी का नया स्वरूप?

इस पूरे प्रकरण में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI की संदिग्ध भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता। वर्षों से ISI भारत में नशे का नेटवर्क चला कर सीमा क्षेत्रों को खोखला करती रही है। अब वही नेटवर्क क्रिप्टो के माध्यम से पैसा इकट्ठा कर उसे आतंकी गतिविधियों में लगा रहा है, ऐसा कई मीडिया रिपोर्ट्स और खुफिया इनपुट से पता चला है। पंजाब पहले ही नशे का गढ़ रहा है, और अब वही क्रिप्टो स्कैम का भी प्रमुख केंद्र बनता जा रहा है।

कहां से संचालित हो रहा है यह जाल?

* इस पूरे नेटवर्क के संचालन की जड़ें तीन देशों—दुबई, कनाडा और पाकिस्तान—में फैली हैं।

* दुबई में मौजूद कई फर्जी डिजिटल मार्केटिंग कंपनियों के माध्यम से क्रिप्टो वॉलेट मैनेज किए जा रहे हैं।

* कनाडा से इसका टेक्नोलॉजिकल बैकएंड और कॉल सेंटर नेटवर्क जुड़ा है।

और पाकिस्तान में स्थित ISI तथा अन्य कट्टरपंथी समूह, खासकर कराची व लाहौर, इसमें रणनीतिक संचालन कर रहे हैं।

इस नेटवर्क में कई भारतीय तकनीक विशेषज्ञों को भी हनी ट्रैप और मनी ऑफर के ज़रिए शामिल किया गया है, जिनकी सहायता से भारत के मोबाइल नेटवर्क, डिजिटल सिग्नल और सोशल मीडिया डेटा तक पहुंच बनाई जा रही है।

“वन कॉइन” घोटाला: क्रिप्टो इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला

इस पूरे नेटवर्क की कार्यप्रणाली OneCoin नामक विश्व प्रसिद्ध क्रिप्टो फ्रॉड से मिलती-जुलती है, जिसकी सूत्रधार थी डॉ. रुजा इग्नोटुवा थी।
क्रिप्टो घोटालों की बात हो और बुल्गारिया की डॉ. रुजा इग्नाटोवा का ज़िक्र ना हो, ऐसा संभव नहीं। इसे दुनिया “क्रिप्टो क्वीन” के नाम से जानती थी। उसने OneCoin नामक एक नकली क्रिप्टोकरेंसी लॉन्च की और दुनिया भर से करीब 15 बिलियन डॉलर (1 लाख करोड़ रुपए से अधिक) की धोखाधड़ी की। अमेरिका की FBI ने रुजा के बारे में जानकारी देने वाले को 1 लाख डॉलर का इनाम भी घोषित किया है।

2017 में वह गायब हो गई और तब से उसका कोई अता-पता नहीं है। संदेह है कि उसने प्लास्टिक सर्जरी करा कर अपनी पहचान ही बदल ली है। भारत में मुंबई पुलिस ने OneCoin स्कैम को उजागर किया था, जिसमें मुंबई के निवेशकों का लगभग 11 मिलियन डॉलर का नुकसान हुआ था।

डायरेक्ट नेटवर्किंग और रातों रात अमीर बनने का झूठा सपना

क्रिप्टो स्कैम गैंग लोगों को बड़े-बड़े सेमिनारों में बुलाते हैं, जहाँ उन्हें 100 यूरो से 2 लाख यूरो तक के “एजुकेशन पैकेज” बेचकर टोकन दिए जाते हैं। बिटकॉइन के नाम पर उन्हें फर्जी टोकन बेच कर यह दिखाया जाता है कि यह अगली बड़ी डिजिटल क्रांति है। असलियत में यह सब एक “पोंज़ी स्कीम” होती है — यानी नए निवेशकों से पैसे लेकर पुराने निवेशकों को भुगतान करना।

अमेरिका-पाकिस्तान की संदिग्ध समीकरण: साउथ एशिया में क्रिप्टो का अड्डा बनाने की कोशिश

कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि अमेरिका की ट्रंप सरकार ने पाकिस्तान में क्रिप्टो टीम भेजकर उसे क्रिप्टो इन्वेस्टमेंट का केंद्र बनाने की रणनीति पर काम किया। इसके पीछे का उद्देश्य अमेरिका के क्रिप्टो निवेश को “सस्ता और गुप्त” बनाना था, जबकि पाकिस्तान इसे आतंकी नेटवर्किंग और जासूसी के लिए इस्तेमाल कर रहा है। यह भारत की सुरक्षा और भविष्य की अर्थव्यवस्था के लिए बेहद घातक संकेत हैं।

ISI, हिज़बुल्ला और हमास से कनेक्शन

RAW, NIA और CERT-IN जैसी एजेंसियों की शुरुआती चेतावनियाँ पाकिस्तान की ISI और मध्य-पूर्वी चरमपंथी समूहों—जैसे हिज़बुल्ला और हमास—की भागीदारी की ओर इशारा करती हैं। इन संगठनों ने पहले ही दुनियाभर में क्रिप्टो नेटवर्क का उपयोग आतंकी फंडिंग और काले धन को छिपाने के लिए शुरू कर दिया है।

अब यही नेटवर्क भारत के युवाओं को उसकी ही सेना के विरुद्ध खड़ा करने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं—बिना कोई गोली चलाए।

भारत को चाहिए सख्त नीति और जागरूकता अभियान

भारत सरकार को इस संबंध में तत्काल सख्त कानून और सतर्क निगरानी प्रणाली की आवश्यकता है। साथ ही जनता के बीच डिजिटल निवेश के जोखिमों को लेकर जागरूकता बढ़ाने की ज़रूरत है। हर व्यक्ति को समझना चाहिए कि “जल्दी और बिना मेहनत के दोगुना पैसा” एक फंसाने वाला जाल है।

भविष्य का डिजिटल माध्यम या जासूसी का उपकरण?

क्रिप्टोकरेंसी यदि नियंत्रित और पारदर्शी तरीके से संचालित हो तो वह आर्थिक भविष्य का माध्यम बन सकती है। परंतु वर्तमान में इसका uncontrolled उपयोग भारत जैसे विकासशील देश के लिए खतरा है। न केवल आर्थिक नुकसान बल्कि सैन्य, सुरक्षा और जासूसी जैसी संवेदनशील व्यवस्था को भी यह खतरे में डाल सकती है। आवश्यकता है सजगता, सतर्कता और सरकार की स्पष्ट नीति की।

लेखक: रविंद्र आर्य
(राष्ट्रीय सुरक्षा और डिजिटल प्रोपेगेंडा पर स्वतंत्र खोजपरक लेखक)

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