सद्गुरु श्री मधु परमहंस जी महाराज ने राँजड़ी में अपने प्रवचनों की अमृत वर्षा से संगत को किया निहाल
हरेक मुक्ति चाहता है। पर बंधन नजर नहीं आ रहा है। इसलिए कोई भी प्रयास नहीं कर रहा है। गोस्वामी जी ने बड़ा प्यारा कहा कि जड़ और चेतन की गठान पड़ गयी है। झूठी है यह गठान पर फिर भी छूट नहीं रही है। आत्मा कोई ऐसा तत्व नहीं है कि बाँधा जा सके। शरीर को जड़ कहा। पांचों तत्वों को जड़ कहा। आप अपनी आग जलाओ तो भी आपको जला देगी। अपना मकान बनाओ। बिल्डिंग से गिर सकते हो। इसमें सोचने की ताकत नहीं। इसलिए ये जड़ हैं। अमेरिका के 12 लोग शरीर के साथ चंद्रमा पहुँचे। इंसान कहाँ नहीं पहुँचा। पृथ्वी के अन्दर भी पहुँच गया। समुद्र को भी मथ दिया। पर यह न तो आत्मा को समझ पाया। मोक्ष के जितने भी प्रयास करता है, वो पर्याप्त नहीं है। लोग अपने कल्याण के लिए कहाँ कहाँ घूम रहे हैं। आदमी कहीं भी संतुष्ट नहीं है।
आज नास्तिकवाद चरम सीमा पर है। जो किसी भी तरह से प्रभु की भक्ति कर रहा है, नास्तिक से अच्छा है। पर वो भटक रहा है। इंसान क्यों भटक रहा है परमात्मा की खोज में। क्या वजह है। इसको प्रलोभन दिया गया है। वहाँ जाओ, काम सुधर जायेंगे। पर आगे भी तो समस्याएँ हैं। पूरे भूमंडल को मुट्ठी में लेने वाली ताकतें भी मिट्टी में मिल गयीं। यह सब जानकर भी इंसान मुक्ति का प्रयास नहीं कर रहा है। मन माया में बंधे हैं। यह तो मान रहे हैं। पर आगे प्रयास नहीं कर रहे हैं। मनुष्य बाहर क्यों भटक रहा है। कोई ताकत है जो इसे बाहर भटकाए हुए है। दुनिया के सब धर्म मोक्ष की बात कह रहे हैं। जिस तरह से बाजीगर के हाथ में बंदर होता है। वो कुछ भी करे, बंधा हुआ है। वो बाजीगर करवाता है। वो सब कुछ करता है। सब सिखाया है। पर अपने गले की कुंडी खोलना नहीं सिखाया बाजीगर ने। वो नहीं खोल पाता है। इस तरह आत्मा को मन मोक्ष का द्वार नहीं बताता है। बिना रस्सी के सारा संसार बंधा हुआ है। आत्मा को बांधने की ताकत रखने वाला कोई नहीं है। यह खुद अज्ञान के कारण बंधी है। अपने को खुद बांधा हुआ है। जैसे कांच के
मकान में रहने वाला कुत्ता अपने ही स्वरूप को दूसरे कुत्ते मानकर भौंकता है और भौंकते भौंकते मर जाता है। जैसे शेर अपनी ही ताकत से कुएँ में दूसरा शेर समझकर कूद पड़ता है। उसे कोई नहीं फेंका। इस तरह यह जीवात्मा अपना विनाश खुद कर रही है। आत्मा को बाँध की ताकत किसी में नहीं है। आत्मा अपनी ही ताकत से अपना हनन करती है। न तो आपकी धरती है, न आपकी आग है, न आपका पानी है। पानी की एक बूँद नहीं बना सकते हो। अगर बनाई तो किसी चीज की मदद ली। आपका कहाँ से हुआ। जो आपकी पत्नी है, वो न जाने कितने शरीर धारण कर चुकी। यह मुर्दाखाना है संसार। कई धुरंधरों की राख थोड़ी सी चुटकी भर मिट्टी में समाई हुई है। बादशाह सिकंदर ने अपनी बसीयत में कहा कि मरने के बाद मेरे दोनों हाथ बाहर रखना और कहते जाना कि देखो, संसार को जीतने वाला बादशाह सिकंदर खाली हाथ गया। यह स्वप्न का संसार है। स्वप्न की सब चीजों को इंसान सच समझता है। पर वो झूठ है। इस तरह जाग्रत में अब आप सब कुछ सच मानते हैं। पर यह संसार स्वप्न की तरह झूठ है। पर उस समय
आप ही स्वप्न को सच मानते हैं। ऐसे ही इस समय कुछ कोशिकाएँ यह संसार सत्य दिखा रही हैं। स्वप्न में भी स्वप्न की कोशिकाएं हैं, वो दिखाती हैं। यह कोशिकाओं का खेल है। वशिष्ठ जी ने राम जी को बोला कि तुम किस संसार की बात कर रहे हो। संसार तो हुआ ही नहीं है। राम जी ने कहा कि यह सूर्य, यह चांद, यह माँ, भाई। कैसे कह रहे हो। यही खेल है माया का। इसका कण कण आत्मा को फंसाने के लिए है। वशिष्ठ जी ने कहा कि हे राम, यह तुम्हारे चित्त की कलना है। चित्त का विरोध करो तो संसार है ही नहीं। चित्त से ही तो याद है न कि बीवी है, दो बच्चे हैं। माँ है। चित्त को रोक दो तो संसार का अस्तित्व ही समाप्त है।