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रक्षाबंधन के अवसर पर राँजड़ी में अपने प्रवचनों की अमृत वर्षा से संगत को निहाल करते हुए कहा कि आत्मा को कोई पकड़ नहीं सकता है :-साहिब बंदगी के सद्गुरु श्री मधुपरमहंस जी महाराज।

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राँजड़ी/जम्मू । साहिब बंदगी के सद्गुरु श्री मधुपरमहंस जी महाराज ने आज रक्षाबंधन के अवसर पर राँजड़ी में अपने प्रवचनों की अमृत वर्षा से संगत को निहाल करते हुए कहा कि आत्मा को कोई पकड़ नहीं सकता है। फिर यह क्या बात है कि मौत के समय यमदूत आत्मा को ले जाते हैं। वो प्राणों को पकड़ते हैं। आत्मा प्राणों से बहुत प्यार करती है। अगर आपकी कोई स्वांस बंद करे तो आप पूरा जोर लगायेंगे कि स्वांस बंद न हो। कहीं कहीं हम कह भी रहे हैं कि यमराज प्राणों को ले गया। आत्मा प्राणों में समायी हुई है। जैसे सरकस वाले जगह जगह पर सरकस दिखाते हैं। उनके पास जानवर भी होते हैं। वो घूमते रहते हैं। लेकिन कैद रहते हैं। अगर वो अमेरिका में भी गये तो भी वो पिंजड़े में ही थे। वो पिंजड़े के साथ ही घूमे। ऐसे ही आत्मा प्राणों में समायी हुई है। सुमिरन की प्रासंगिकता बहुत है। साहिब के शब्द बहुत सटीक हैं। साहिब कह रहे हैं कि जप, तप, संयम, साधना सब सुमिरन में आ जाते हैं। सुमिरन के समान कुछ भी नहीं है। अगर मछली को पानी बनने की कला आ गयी तो फिर धीमर उसे पकड़ नहीं सकता है।

आत्मा को यमदूत साथ ले जाते हैं। इसका मतलब है कि शरीर और आत्मा अलग चीज हैं। खुद निकलना सीख ले तो क्या बात है। आत्मा अनादिकाल से संसार में भटक रही है। अगर दूध बिगड़ गया तो घी नहीं मिलेगा। हम कहते हैं कि मन माया में आत्मा बँधी है। मन और माया के अन्दर इतनी ताकत नहीं है कि आत्मा को बाँधे। आत्मा खुद बंधी है। इसमें आत्मा की भी इच्छा है। इस शरीर में सात पाखंडी रहते हैं। दो कान हैं। कोई बुरा बोल दे तो नाराज हो जाते हैं। फिर दो आँखें बड़ी पाखंडी हैं। ये बहुत उलझाव पैदा करती हैं। पाप से बचने के लिए सबसे पहले आँखों को साधना है। सुन्दर रूप आँखों की पूजा है। पराई स्त्री है तो फौरन निगाह चालाकी से उस तरफ पहुँच जाती है। पाँचवां पाखंडी जीभ है। जीभ के स्वाद के लिए इंसान बहुत उपाय करता है। दूसरे जीवों को मारकर खाते हैं। छठी पाखंडी शिश्न इंद्री है। इसके स्वाद के लिए मनुष्य क्या, देवता भी काम में उलझ जाते हैं। सातवां पाखंडी मूलादार चक्र। इनके अन्दर जीव को घेरा हुआ है। मनुष्य स्वांसा के रहस्य को नहीं जान पा रहा है। कभी कभी मनुष्य को अस्पताल में ले जाते हैं। अगर ज्यादा बीमार हो गया तो आई सी. यू में ले जाते हैं। स्वांस लेने के लिए भी एक ताकत चाहिए।

स्वांस लेने के लिए आप एक क्रिया कर रहे हैं। आप स्वांस ले भी रहे हैं और आप स्वांस छोड़ भी रहे हैं। जब इंसान में स्वांस लेने की ताकत कम हो जाती है तो आई. सी. यू. में कृत्रिम स्वांस देते हैं। लेकिन अन्दर से जीव स्वांस ले रहा है। लेकिन जब हंसा निकल गया तो कोई डाक्टर उसको एक पल की जिंदगी नहीं दे सकता है। इसलिए स्वांस में सार है। किसी बाहरी खिलौने में स्वांस दे दे तो क्या काम करेगा। नहीं। स्वांस आत्मदेव ले रहा है। स्वांसा सबकुछ नहीं है। लेकिन इस शरीर के लिए स्वांसा सार है। मनुष्य नहीं जानता है कि स्वांस कहाँ से आ रही है। शून्य से ही आकाश तत्व है। आकाश तत्व से ही वायु है। शून्य से ही सारी सृष्टि है। शून्य से ही स्वांस उठती है और नाभि दल में आती है। इसे सुरति से पकड़ में आ जाती है। स्वांसा में आत्मा फँसी है। जाल में पक्षी फँसा है तो निकल नहीं पाता है। आत्मा स्वांसा से बहुत प्यार करती है। साहिब कह रहे हैं कि जब जीव स्वांस ले निकल गया तो कोई नहीं पकड़ सकता है।

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