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क्या जम्मू-कश्मीर में हमारी अगली संतानों को भी अनिश्चितता में ही जीना होगा।

आई डी खजुरिया(लेख)।

सरकारें बदलीं नारे बदले पिछले 75 सालों में कई समझौते हुए दिल्ली -श्रीनगर के बीच और 1947 से लेकर नेहरू, शास्त्री, इंदिरा , अटल बिहारी और मनमोहन सिंह तक इणडो-पाक समझौते होते रहे और हर बार जम्मू-कश्मीर की सीमाओं को आगे पीछे करने में सहमति होती रही और जम्मू-कश्मीर की जनता को यकीन दिलाया जाता रहा कि जम्मू-कश्मीर के बीच की खुनी लकीर को समाप्त करके सभी बिछड़े हुए परिवारों को एक जुट होकर रहना नसीब होगा और रोज रोज का मरना, बार बार रिफ्यूजी कैम्प में रहना और हर बार शक के शंकजे में यातनाओं को भुगतना जिस से हीरानगर बार्डर से लेकर उड़ी करगिल लाईन आफ कणटरौल तक जनता की जिंदगियां नर्क से भी बद्तर बनी हुई है।
5 अगस्त,2019 को एक बार फिर रियासत जम्मू-कश्मीर का राज्य दर्जा खत्म करके दो यू टी में तब्दील कर दिया एक लदाख और दुसरी जम्मू-कश्मीर यू टी ।
भारतीय संविधान की धारा 370 के तहत मिले सभी अधिकार खत्म कर दिये गये और रिआरगेनाईजेशन एक्ट के तहत नहीं नागरिकता तय कर दी गई।
और उस दिन से यकीन दिलाया जा रहा है कि अब अमन और तरक्की से सुरत बदल जाएगी।
तरक्की की बात तो अब क्या करें सिर्फ अमन ही मिल रहा होता तो भी जनता मेहनत मशक्कत करके जी लेते परन्तु आज भी खुन खराबा उसी तरह हो रहा है।
इसी साल इतनी घटनाएं होगई जिस ने साबित कर दिया है कि सब कुछ ठीक नहीं है।जब बार्डर पर कहीं भी हिलजुल होती है या कहीं गोली चलती है या फिर ड्रोन कहीं घूमने की आवाज आए तो पुरे बार्डर और लाईन आफ कणटरौल पर पुरी आबादी डर कर दुबक जाती है और बंकरों की तरफ देखना मजबूरी बन जाती है।
उपर से शक की नज़र में आ जाते हैं और अपनी ही एजेंसीज और सिक्योरटी फोर्सेस के हाथों भी दण्डित हो जाते हैं।
अभी पिछले हफ्ते चार दिन पहले पुंछ सेक्टर में उग्रवादी घटना में भारतीय सेना के चार ज़बान शहीद हो गए थे जो एक बहुत दर्दनाक घटना थी जिस पर पुरा राष्ट्र रोया था।
परंतु उस के बाद जो कुछ हुआ वो भी निंदनीय तो है ही कि सुरक्षा एजेंसियों ने डेढ़ दर्जन लोगों को घरों से उठा लिया जिस में 14 साल वचचा और नौजबान भी शामिल थे और उनके साथ ऐसा क्या हुआ और क्यों हुआ। जिस से तीन व्यक्ति अपनी जान खो बैठे हैं और आधी दर्जन अभी भी जम्मू मेडीकल कॉलेज में इलाज करा रहे हैं।
अब सवाल यह उठता है कि जो कुछ कहा गया या किया गया क्या उस सोच और अमल से कहीं भी देश प्रेम या देश भक्ति बनाई जा सकती है। पुछताछ करने का तरीका अगर ऐसा होता है तो ऐसा राष्ट्र बना कर भी कैसे सबको साथ लेकर चलने का यकीन बनाया जा सकता है।
बेशक आला सतह पर तबादले भी हो जाएं या सज़ाएं भी हो जाएं परंतु मानसिकताएं अगर शकभरी रहें और रंग नस्ल जात धर्म पर आधारित रहे तो ऐसे घटना क्रम होते रहें गे ।और ऐसी शांति कभी शांति नहीं कहलाई जाएगी।
खबर छुपाना ताकि अपनी सरकार के मुखिया को पता नहीं चले तो फिर नये कदम कौन उठाएगा। अखबारें भी इसी मानसिकता से ग्रस्त हैं।
अभी तक कोई भी दलेरी से या सच्चाई से नहीं मान रहा है न ही कह रहा है कि जम्मू-कश्मीर में अभी शांति नहीं है।बिकास का तो सवाल ही नहीं उठता है। कश्मीर में नमाज़ पढ़ते हुए रिटायरड एसपी को मार दिया जाता है परंतु आज भी कोई नहीं कहता कि जम्मू-कश्मीर में संवाद का रास्ता अपनाया जाए हर ईकाई से बात चीत करनी होगी ताकि मुकम्मल शांति कायम की जा सके और आने वाली पीढ़ियों को अनिश्चितता से छुटकारा मिल सके।

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