कहाँ हो, ओ मेरे राम…!
मैं ढूँढूँ आठो याम
कहाँ हो, ओ मेरे राम…!
कण कण में तुम रमे हुए हो
भक्त हृदय में थमे हुए हो-
लो बाँहें मेरी थाम…! कहाँ..
फूल में तुम हो, शूल में तुम हो
वन, पर्वत, अरु धूल में तुम हो
तुम चन्द्र सूर्य सुबह शाम…! कहाँ..

हर प्राणी के प्राण में हो तुम
तीर्थ व्रत निर्वाण में हो तुम
तुम वेद- शास्त्र अभिराम.! कहाँ..
मंदिर मंदिर तुझको हेरा
पा न सकी पर तेरा डेरा
दिखे, दुःखी हृदय तुम श्याम! …
कहाँ..
तुम रहते नहीं वन – आरण्य में,
तुम रहते नहीं विविध जतन में
हिय मातु- पिता तेरा धाम..! कहाँ..
मातु पिता गुरुजन जो सेवे
सुकर्मों के पा जाये मेवे
मिले उसे तुरत तुम राम…! कहाँ..
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डॉ अन्नपूर्णा श्रीवास्तव
पटना बिहार
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