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राजेंद्र शर्मा के तीन व्यंग्य

1. हथकड़ियों का डंका!

एक बात माननी पड़ेगी कि मोदी जी जो खुद कहते हैं, वह तो जरूर करते ही करते हैं, वह और भी पक्के से करते हैं, जो भक्त कहते हैं कि मोदी जी कर देंगे। बताइए, मोदी जी ने अपने मुंह से कभी कहा था कि देश तो देश, विदेश तक से घर वापसी कराएंगे। बस वह तो सिर्फ भक्तों और भक्तिनों ने कहा था कि कुछ भी हो जाए, मोदी जी वापस ले आएंगे। वॉर रुकवानी पड़ी, तो वॉर रुकवा कर लाएंगे, पर मोदी जी घर वापस ले आएंगे। और मोदी जी ले आए। अमरीका से, भारतीय बंदों को वाापस ले आए।

माना कि मोदी जी की पार्टी ही घर वापसी कराने वाली पार्टी है। पर पार्टी की नीति को फिर भी मोदी जी की तरह पर्सनल कमिटटेंट कौन बनाता है, और वह भी अपने मुंह से कहे बिना। पर मोदी है, तो कुछ भी मुमकिन है। 104 की घर वापसी हो चुकी है। सुना है अठारह हजार घर वापसी की लाइन में लगे हैं। डीयर फ्रैंड डोनाल्ड से लड़-झगड़ कर मोदी जी कुल सवा सात लाख तक का गुंताड़ा बैठा चुके हैं। इब्तिदा ए इश्क है विपक्ष रोता है क्या, आगे-आगे देखना होता है क्या!

पर थैंक्यू की छोड़ो, विपक्षी तो नाक कटने का शोर मचा रहे हैं। नाक भी, भारत उर्फ इंडिया की। हमें कोई बताएगा कि इसमें नाक कटने-कटाने वाली बात कहां से आ गयी। हिंदुस्तानी थे, जो अमरीका के दरवाजे पर पकड़ा गए, चोरी से भीतर घुसे या घुसने की कोशिश करते हुए। ट्रम्प जी ने पकड़कर वापस भेज दिया, वह भी हाथ के हाथ। जनवरी के आखिरी हफ्ते में पकड़ा और फरवरी के पहले हफ्ते में वापस भेज दिया।

मुस्तैदी हो तो, ट्रम्प की जैसी हो। बेशक, यह फ्रैंड ट्रम्प का नजरिया है। पर फ्रैंड मोदी की नजर से भी इसमें कुछ भी गलत नहीं है। मोदी के विदेश मंत्री, जयशंकर ने एकदम सही कहा ; सब कुछ ही तो नियमानुसार हुआ है। और विपक्ष वाले जो अब हिंदुस्तानियों को पकडक़र वापस भेजे जाने का शोर मचा रहे हैं, तब कहां मुंह में दही जमा कर बैठ गए थे, जब मनमोहन सिंह के टैम में ऐसे ही अमरीका के दरवाजे से पकड़कर हिंदुस्तानी वापस भेजे गए थे। हिंदुस्तानी ऐसे ही पकडक़र पहले भी भेजे जाते रहे हैं। पिछले पंद्रह साल में पूरे अठारह हजार भेजे गए हैं। इस साल तो सिर्फ एक सौ चार भेजे गए हैं। आगे और भी भेजे जाते रहेंगे। हिंदुस्तानी ऐसे ही पकड़कर आगे भी भेजे जाते रहेंगे। ये मोदी की गारंटी है।

हर चीज में खामखां में नाक फंसाने वाले अगर इसमें नाक कटने की शिकायत कर रहे हैं, तो इसमें मोदी जी क्या कर सकते हैं? विदेशी संबंधों के मामले में तो वैसे भी किसी को नाक फंसानी ही नहीं चाहिए। फिर अगर किसी से नाक कटाने की शिकायत बनती भी है, तो इन बंदों से शिकायत बनती है। इन्हें जरूरत क्या थी अमरीका जाने की और बिना कागजों के उनके घर में घुसने की। मोदी जी ने यहां अमृत काल का फुल इंतजाम किया है। अयोध्या में भव्य राम मंदिर का उद्घाटन किया है। योगीc जी ने यूपी में करीब-करीब राम राज्य ला दिया है। गुजरात में तो राम राज्य मोदी जी खुद अपने कर-कमलों से 2002 में ही ले आए थे। भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ रही अर्थव्यवस्था बन चुका है। भारत को विश्व गुरु का आसन मिल चुका है। पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बस बनने ही वाले हैं, आज नहीं तो कल।

जिधर भी देखो, गर्व ही गर्व छाया हुआ है। सबसे बढ़कर सनातनी होने का गर्व। कोविड में गंगा शववाहिनी बन गयी तब भी और कुंभ में शव-वाहिनी बनते-बनते रह गयी, तब भी। फिर ये बंदे गए ही क्यों दूसरे के दरवाजे पर नौकरी मांगने। मोदी जी तो ऐसा इंडिया बनाने में लगे हैं, जहां वीज़ा के लिए सारी दुनिया लाइन लगाएगी। योगी जी ऐसा यूपी बनाने में जुटे हैं, जहां अमरीका समेत सारी दुनिया नौकरी खोजने आएगी। और ये नादीदे उन्हीं अमरीकियों के दरवाजे पर पहुंच गए और वह भी बिना कागज के। क्या ये 2047 में भारत के विकसित देश बनने तक इंतजार नहीं कर सकते थे, जल्दबाज कहीं के। विश्व गुरु की नाक कटवा दी! हरियाणा वालों ने सही किया, जो हवाई अड्डे पर उतरते ही इन बंदों को सीधे कैदी वाहन में भेज दिया। ऐसे एंटी-नेशनलों की जगह तो जेल में ही है; अमेरिकी जेल में न सही, हिंदुस्तानी जेल में सही। जेल-जेल मौसेरे भाई!

और ये विरोधी हथकड़ी-बेड़ी डाले जाने पर तिल का ताड़ और राई का पहाड़ क्यों बना रहे हैं? हथकड़ी-बेड़ी डालने से क्या होता है? अमरीकी कोई पैदल चलाकर नहीं लाए हैं, बाकायदा अपने जहाज से छोड़कर गए हैं। पर यहां तो भाई लोगों को फौजी जहाज से भी दिक्कत है। कह रहे हैं कि यह तो आतंकवादियों जैसा सलूक है। प्रवासी थे, फिर उनके साथ आतंकवादियों जैसा सलूक क्यों किया गया? और घुमा-फिराकर ठीकरा वही मोदी जी के सिर पर; मोदी जी ने ऐसा कैसे होने दिया? ट्रम्प तो डीयर फ्रेंड था, उसका तो पिछली बार अमरीका में जाकर चुनाव प्रचार भी किया था, उसने हिंदुस्तानियों के साथ ऐसा कैसे होने दिया? और यह भी कि जब कोलंबिया ने, मैक्सिको ने, ब्राजील ने, वेनेजुएला ने, ट्रम्प को फौजी जहाज से अपने नागरिकों को इस तरह पहुंचाकर अपना अपमान नहीं करने दिया, तो मोदी जी ने भारत का अपमान क्यों होने दिया? सिंपल है, मुफ्त हवाई यात्रा के लिए। सारा खर्चा अमरीकियों ने किया है, इंडिया की गांठ से एक कौड़ी नहीं लगी है। हम तो कहते हैं मोदी जी अगले हफ्ते तो ट्रम्प जी से मिलने जा ही रहे हैं, लौटते टैम अपने साथ सौ-डेढ़ सौ प्रवासी भारतीयों को तो साथ ला ही सकते हैं। हथकड़ी-बेड़ी का झगड़ा भी नहीं और बचत की बचत। कम से कम विरोधियों को नाक कटने-कटवाने का शोर मचाने का मौका नहीं मिलेगा। बल्कि एक और काम हो सकता था। मोदी जी वापसी पर उनके फौजी जहाज से ही चले जाते। सारी आलोचनाएं भी ध्वस्त और बचत ही बचत।

आखिर में एक बात और। हथकड़ी-बेड़ी डालकर और फौजी जहाज से भारतीयों के भेजे जाने पर, मोदी जी को ज्यादा झेंपने-वेंपने की जरूरत नहीं है। बेशक, भारतीयों के साथ यह पहली बार हुआ है। बेशक, भारतीयों के साथ ही यह सबसे पहले हुआ है। पर यह शर्म की नहीं गर्व की बात है। आखिर, विश्व गुरु भी तो हम ही हैं। जो भी नया होगा, सबसे पहले हमारे साथ ही तो होगा। किसी का डंका यूं ही थोड़े ही बज जाता है! डंका बजवाने के लिए कुछ न कुछ क़ुरबानी तो देनी ही पड़ती है।

2. पर डंका बज रहा है!

विपक्ष वालों की ये बात एकदम गलत है। बात-बात पर मोदी जी का डंका फटने की बात करने लगते हैं। बताइए, ट्रम्प साहब ने सौ से कुछ ऊपर भारतीयों को हथकड़ी-बेड़ी में फौजी जहाज में वापस क्या भेज दिया, इन्हें इसमें भी मोदी जी का डंका फटता दिखाई दे गया। कह रहे हैं कि इतिहास में पहली बार भारतीयों को इस तरह हथकड़ी-बेड़ियों में लौटाया गया है। न नेहरू के टैम में, न इंदिरा के टैम में और न राजीव के टैम में, अटल जी के टैम में भी नहीं। बस यही पहली बार है। कितने नकारात्मक हैं ये विरोधी; मोदी जी ने घर वापसी करायी है, उसे नहीं देख रहे हैं, बस हथकड़ियों का शोर मचा रहे हैं! जैसे भारतीयों ने पहले कभी हथकड़ियां देखी ही नहीं हों।

रही बात भारतीयों के साथ बदसलूकी की, तो हम तो विदेश मंत्री के साथ हैं। इस सब में बेइज्जती वाली तो कोई बात ही नहीं है। जो कुछ हुआ है, नियम के अनुसार हुआ है। नियम कहता है कि अवैध रूप से अपने यहां घुसने वालों को वापस भेज सकते हैं, तो उन्होंने वापस भेज दिया। नियम कहता है कि किसी भी साधन से भेज सकते हैं, तो उन्होंने फौजी जहाज से भेज दिया है। नियम कहता है कि वापस भेजे जाने वाले बंधन में रखे जा सकते हैं, तो उन्होंने हाथ-पांव-कमर, सब से बांधकर भेज दिया है। नियम का उल्लंघन कहां है? और हां! भेजने वालों ने यह भी बताया है कि औरतों और बच्चों को हथकड़ियां नहीं लगायी गयीं। शौचालय वगैरह जाने के लिए हथकड़ी-बेड़ियां खोल दी गयीं। जहाज में कैदियों की बाकी जरूरतों का ख्याल रखा गया। पर भुक्तभोगी कुछ और ही कह रहे हैं। अब विदेश मंत्री इन विरोधी दावों में से किसे सच मानें!

रही अमरीका के फौजी हवाई जहाज से भारतीयों की घर वापसी की बात। तो अमरीकियों के जबरन धकेलने के लिए, कोलंबिया वगैरह की तरह सफर खर्च भी हम ही करते, इसमें क्या अक्लमंदी होती? मोदी जी ने कम से कम कुछ खर्चा तो बचा लिया। हम तो कहते हैं कि अगले हफ्ते जब मोदी जी डियर फ्रैंड ट्रम्प से मिलने जाएं, तो वापसी में दो-चार सौ भारतीयों को अपने जहाज में साथ लेते आएं। हथकड़ी-बेड़ी का झंझट नहीं और घर वापसी का खर्चा भी नहीं।

3. फतेह का डंका

आखिरकार, मोदी जी ने दिल्ली फतेह कर ही ली। मोदी जी को अपनी दिल्ली की फतेह का भगवा पार्टी के हजार करोड़ी दफ्तर के मंच से एलान करने का मौका मिल ही गया। वैसे, इस मौके के लिए दिल्ली की पब्लिक ने भी भगवाईयों से बड़ा इंतजार कराया। छोटा-मोटा नहीं, पूरे अठाईस साल का इंतजार कराया है। बेशक, दिल्ली की पब्लिक की भी इतनी हिम्मत नहीं थी कि मोदी जी से अठाईस साल का इंतजार करा देती। बेचारे भगवाईयों का इंतजार तो मोदी से पहले से चला आ रहा था। और तो और मोदी जी के गुजरात का सीएम बनने से भी पहले से, अटल जी की टैम से। पर राम जी झूठ न बुलाएं, करीब ग्यारह साल का इंतजार तो दिल्ली की पब्लिक ने मोदी जी से भी कराया ही था। पर अब और नहीं। अब एक दिन और नहीं। मोदी जी ने दिल्ली फतेह करने का डंका बजा दिया है।

बेशक, ग्यारह साल बाद भी मोदी जी की जीत का डंका आसानी से नहीं बज गया। जीत का यह डंका सिर्फ चुनाव के टैम पर बजाने से भी नहीं बज गया है। इस फतेह का डंका बजाने के मौके के लिए मोदी जी और उनकी सरकार सालों से भिड़े हुए थे। करीब पांच साल से तो प्राण-प्रण से ही भिड़े हुए थे। पांच साल पहले वाली शिकस्त के फौरन बाद, दिल्ली में दंगा कराया। फिर दंगे के आरोपों में इकतरफा मुसलमानों को लंबे-लंबे समय के लिए, बिना जमानत जेलों में बंद कराया। असली दोषियों को बचाया, दंगों की राजनीति का विरोध करने वालों को राजद्रोह से लेकर यूएपीए तक में जेलों में बंद कराया। फिर, तरह-तरह से शह देकर, बहुसंख्यक सांप्रदायिकता की राजनीति को घर-घर की बात बनवाया। लाट गवर्नर को उसका अंगरेजों के जमाने का दर्जा दिलाया और अगले को केजरीवाल की सरकार के खिलाफ परमानेंट युद्घ में लगाया। युद्घ भी ऐसा जिसमें सब कुछ जायज था; कुछ भी कर के दिल्ली की सरकार को पूरी तरह से ठप्प करना भी।

लाट गवर्नर को भी केजरीवाल सरकार से मोर्चा लेने के लिए कोई अकेला ही नहीं छोड़ दिया गया। खुद मुख्यमंत्री केजरीवाल तक, उनकी सरकार और पार्टी के दिल्ली के हरेक बड़े नेता को चुन-चुनकर जेल पहुंचाया गया। शराब घोटाले से लेकर शीश महल तक, घोटालों का अंधाधुंध शोर मचाया गया। सीएजी की अजन्मी रिपोर्ट से लेकर, यमुना के पानी और दिल्ली की हवा के लंबे समय से चले आते संकटों को, मोदी विरोधियों की सरकार की करनी बनाया गया। गोदी मीडिया के सहारे, मोदी पार्टी वालों को रामजादे और उनके विरोधियों को राम-विरोधी बनाया गया।

पर इतने सब से भी जब फतेह का पक्का भरोसा नहीं हुआ, बेचारे चुनाव आयोग को काम पर लगाया गया। दसियों हजार संभावित विरोधी मतदाताओं का वोट कटवाया गया, लाखों अपने मतदाताओं का नाम लिखवाया गया। चुनाव आयोग की मौन स्वीकृत से मोदी जी की पार्टी की तरफ से झुग्गी-झोपड़ियों वाले मतदाताओं के बीच 1100 से 2000 रुपये तक नकद और साड़ी, सलवार सूट, जूते आदि का वितरण कराया गया। देश की राजधानी में चुनाव में पहली बार गुंडागर्दी, हिंसा का खेल दिखाया गया। और तो और ऐन मतदान के दौरान दिन भर टेलीविजनों पर मोदी जी का कुंभ स्नान दिखाया गया। इतना कुछ और इसके अलावा भी बहुत कुछ करने के बाद और विरोधियों से भी कई-कई प्रकट मूर्खताएं कराने के बाद ही, मोदी जी की फतेह का दिन आया है।

वैसे इतना सब करने के बाद भी, दिल्ली फतेह करने के बाद भी, यह कहना मुश्किल है कि मोदी ने दिल्ली वालों का दिल जीत लिया है। अब भी आधे से ज्यादा दिल्ली वालों ने तो भगवा पार्टी के खिलाफ ही वोट दिया है। फिर भी, जो जीता वही सिकंदर। अब सीएम कोई भी बने, पर डंका तो मोदी की दिल्ली फतेह का बज रहा है।

(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और ‘लोक लहर’ के संपादक हैं।)

 

राजेंद्र शर्मा
राजेंद्र शर्मा

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