मन पूरे संसार को अपने इशारों पर नचा रहा है, मन को कोई भी नहीं जान पा रहा है।:- सद्गुरु श्री मधुपरमहंस जी महाराज
सब मन का है, जैसा मन का संकल्प होता है, इंसान उसी के अनुसार कर्म करता है:-सद्गुरु श्री मधुपरमहंस जी महाराज
जम्मू | साहिब बंदगी के सद्गुरु श्री मधुपरमहंस जी महाराज ने आज मिश्रीवाला, जम्मू में अपने प्रवचनों की अमृत वर्षा से संगत को निहाल करते हुए कहा कि मन पूरे संसार को अपने इशारों पर नचा रहा है। मन को कोई भी नहीं जान पा रहा है। जितना भी पसारा आप देख रहे हैं, सब मन का है। जैसा मन का संकल्प होता है, इंसान उसी के अनुसार कर्म करता है। हर क्रिया का प्रवर्त्तक ही मन है। इस तरह किसी का ध्यान ही नहीं है। आदमी कहता है कि मेरी इच्छा है। आपकी कोई इच्छा नहीं है। आप आत्मा हैं। मन से उठने वाली तरंगों को आदमी कहता है कि मेरी तरंगें हैं। नहीं हैं तुम्हारी तरंगें। ये तरंगें आपकी नहीं हैं। मन की तरंगों में सारा संसार भूला हुआ है। हमारी आत्मा का यह विभाग नहीं है। काम, क्रोध सब मन उत्पन्न करता है। मन ही पुत्र है, मन ही बाप है। मन ही राजा है, मन ही प्रजा है। पूरा जगत मनमय है। पूरी दुनिया मन की मुरीद है। सर्दी और गर्मी का अनुभव हमारी त्वचा ही करती है। खुशबू का अनुभव केवल हमारी नासिका करती है। शब्दों का अनुभव हमारे कान करते हैं। दृश्य का अनुभव केवल हमारी आँखें करती हैं। इस तरह मन का अनुभव केवल हमारी सुरति कर सकती है। ध्यान से संभव है। ध्यान आत्मा है। मन इसी ध्यान को 24 घंटे विचलित करता है। एक शराबी था। वो टकटकी लगाकर धरती को देख रहा था। एक सज्जन ने पूछा कि क्या देख रहे हो। वो बोला कि चुप रहो। धरती घूम रही है। मैं देख रहा हूँ कि कब मेरा घर आए और मैं उसमें घुस जाऊँ। उस शराबी के लिए तो यह सच था। पर उस सज्जन के लिए तो मिथ्या थी। कल्पना से परे बात थी। इस तरह मन के नशे में सारा संसार घूम रहा है। उस शराबी को कोई कितना भी समझाना था, पर वो नहीं
समझना था। इस तरह यह संसार मन के नशे में सत्य को नहीं समझ पा रहा है। शरीर का रोम रोम मन का आज्ञाकारी है। आत्मा के साथ भयंकर धोखा हो रहा है। जैसे नींद में सपना देखता है तो उसे उस समय सत्य मानता है। इस तरह संसार सत्य लग रहा है। चाहे कितना भी बुद्धिमान होगा। यह संसार नींद के सपने की तरह है। सच लग रहा है।