गीत

सावन पर विशेष

             “सावन पर विशेष”
ना कहीं वो झूले दिखते ना बरगद की शाखाएं।
सावन माह मुहोब्बत वाला बन गया दंत कथाएं।
होटलों बीच मनाया जाता बाग़ों का त्योहार।
नकली गहने नकली वस्त्र नकली हार श्रृंगार।
नकली वृक्षों भीतर चलतीं मोटर साथ हवाएं।
ना कहीं वो झूले दिखते ना बरगद की शाखाएं।
बापू जैसे खेत प्यारे कर दिए सब कर्ज़ाई।
परदेशों में पुत्र भेजे ख़बर ना कोई आई।
घर तो खालम खाली हो गए किस का दर खड़काएं।
ना कहीं वो झूले दिखते ना बरगद की शाखाएं।
हाकिम तेरी नीति में मादक द्रव्य की बुलंदी।
बदबू वन कर फैल गई है चारों ओर सुगंधी।
अर्थी भीतर पुत्र ढूंढें रो-रो कर माताएं।
ना कहीं वो झूले दिखते ना बरगद की शाखाएं।
ना कहीं अब पूड़े पकते ना खीर ना काजू कतली।
ना ही सखियां मिल कर बैठें ना उमंग की तितली।
सिर्फ स्वार्थ में उठती हैं एक दूजे की बलाएं।
ना कहीं वो झूले दिखते ना बरगद की शाखाएं।
घर-घर भीतर इक बच्चे की सुनती है किलकारी।
चाचा चाची ताऊ वाली खत्म हुई सरदारी।
रिश्तों के संबोधन टूटे किसको क्या कहलाएं।
ना कहीं वो झूले दिखते ना बरगद की शाखाएं।
बंदे की बर्बादी के हथियार बनाए जाते।
सीमा धरती अवहरना में बम्ब चलाए जाते।
आधुनिकता का दौर बढ़ा है बढ़ गई हैं घटनाएं।
ना कहीं वो झूले दिखते ना बरगद की शाखाएं।
जिस में जन्नत वाली होती थी इक मीठी रीत।
साझा वाली उल्फ़त वाली मर्मस्पर्शी प्रीत।
लैंम्प दीए की लौ वाले प्रकाश कहां से लाएं।
ना कहीं वो झूले दिखते ना बरगद की शाखाएं।
लैपटोप मोबाईल भीतर घुस गए बच्चे सारे।
रिश्ते नाते बहरे हो गए मस्तिष्क हो गए भारे।
जीने की परिभाषा बदली पहिए साथ इच्छाएं।
ना कहीं वो झूले दिखते ना बरगद की शाखाएं।
युग परिवर्तन शील रहा है युग संग चलना पड़ता।
बंदे को भी सूरज भांति चढ़ना ढ़लना पड़ता।
बालम कहता इस युग से फिर जीतेयां हर जाएं।
ना कहीं वो झूले दिखते ना बरगद की शाखाएं।

सरदार बलराम सिंह
सरदार बलराम सिंह

बलविन्दर बालम गुरदासपुर
ओंकार नगर गुरदासपुर (पंजाब)
मोबाईल नंबर 9815625409

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