कबीर साहिब के 626वें प्रकाश दिवस पर विषेश
कबीर साहिब कोई संत थोड़ा थे। वो संतों की खानि थे। संतत्व की धारा उन्हीं के द्वारा चली। उनका व्यक्तित्व बड़ा निराला था। एक पत्रकार ने मुझसे प्रश्न किया, बोला कि आप केवल कबीर साहिब को लेकर चलते हैं। कबीर साहिब से पहले भी तो कई ऋषि-मुनि, योगी, योगेश्वर, अवतार आदि हुए। आप उनकी कम बात करते हैं। आप केवल एक कबीर को लेकर चलते हैं। ऐसा क्यों। मैंने कहा कि जो भी संसार में आया, माँ के पेट से जन्म लेकर आया। पर कबीर साहिब एकमात्र ऐसी शख्सियत थी, जो माँ के पेट से शरीर लेकर संसार में नहीं आए। उसने बोला कि यह कबीर पंथियों द्वारा किवदंती है। मैंने कहा कि नहीं, यह यथार्थ है। यह सच है। उनकी कई वाणियों में आता है कि मैं उस अमर लोक से जीवों के कल्याण के लिए संसार में आया हूँ। मैं माँ के पेट में नहीं रहा। मैं नीरू जुलाहे को लहरतारा तालाब में मिला। साहिब ने पहले संसार को गुप्त रहकर सत्य का संदेश देना शुरू किया। लोग डर गये कि भूत है। तब साहिब ने सत्य शरीर धारण किया, जो केवल देखने मात्र का था। पर वास्तव में उनका कोई शरीर नहीं था। एक समय संत दादू दयाल ने अपने शिष्यों से पूछा कि अगर किसी ने कबीर साहिब को देखा है तो हाथ खड़ा करो। एक बूढ़े ने हाथ खड़ा किया। दादू दयाल ने पूछा कि कैसे देखा। बोला कि मेरा दादा जी मुझे उनके पास ले जाता था। दादू दयाल ने पूछा कि तुमने क्या देखा। वो बोला कि मैं बहुत छोटा था तब।
जब मैंने उनको ध्यान से देखा तो उनके पीछे की चीजें भी दिखाई दे रही थीं। फिर मैं पीछे की तरफ गया तो आगे की चीजें दिखाई दे रही थीं। वो पारदर्शी शरीर था। दादू दयाल ने अपने शिष्यों से कहा कि पानी लाओ। दादू दयाल ने उस बूढ़े की आँखें धोई और वो जल पी लिया। दादू दयाल ने कहा कि जिन आँखों ने वास्तव में कबीर साहिब को देखा, वो आँखें धन्य हैं। कबीर साहिब के ज्ञान को सुनकर उस समय सब कबीर साहिब के अनुयायी बन रहे थे। ऐसे में विरोधी तबके ने कबीर साहिब की छवि को बिगाड़ने की बहुत कोशिश की, ताकि लोग वहाँ न जाएँ। कई कहानियाँ जोड़ दीं। लहरतारा तालाब को भी गंदा कर दिया, जहाँ साहिब प्रगट हुए थे। कबीर साहिब ने समाज को जगाया। उनकी वाणी चेतावनी है। कुरीतियों से बचाया। साहिब साफ साफ अपनी वाणियों में कह रहे हैं कि मैं एक अमर देश से आया हूँ। गर्भ वास में मैं नहीं रहा। बालक रूप में जुलाहे को लहरतारा तालाब में मिला। उनका शरीर रज-वीर्य का नहीं था। कबीर
शब्द की परिभाषा ही यही है जो काया रहित है। समाज का हरेक वर्ग जानता है कि कबीर साहिब का जन्म एक जुलाहे के घर हुआ। यह पाखंडी तबके का खेल था। साहिब कह रहे हैं कि न मेरी कोई पत्नी है, न बच्चे हैं। मैं हंसों को छुड़ाने अमर लोक से आया हूँ।
माघ सुदी एकादश को सुबह अमृत वेले में एक अद्भुत प्रकाश लहरतारा तालाब में उतरा। कमल के पत्तों पर बालक के रूप में परिवर्तित हो गया। उस समय रामानन्द जी के शिष्य अष्टानन्द जी ध्यान कर रहे थे वहाँ। उन्होंने यह प्रकाश उतरते देखा। जाकर रामानन्द जी को यह बात बताई। रामानन्द जी ने कहा कि पूरे संसार को उसका संदेश मिलेगा। संयोगवश नीरू नीमा वहाँ से आ रहे थे। नीमा को प्यास लगी तो तालाब में पानी पीने गयी। उसने कमल के पत्तों पर सुन्दर बालक को देखा तो उठाकर ले आई। पर पाखंडियों ने नीरू नीमा को ही कबीर साहिब के माता-पिता बना दिया। पर सत्य यह था कि साहिब स्वयं संसार में अद्भुत शरीर लेकर प्रगट हुए, जो केवल देखने मात्र का था। साहिब ने छोटेपन से ही लोगों को अमर लोक का संदेश देना शुरू किया। कुछ लोगों ने कहा कि आपका गुरु कौन है। गुरु के बिना तो ज्ञान नहीं है। तब साहिब ने रामानन्द जी को गुरु किया ताकि लोग भ्रमित न हों। साहिब की फोटो में आप जो माला, तिलक आदि देखते हैं, वो साहिब का वैष्णव रूप है। साहिब ने संसार को चेताया। महान समाज सुधारकों में साहिब का विषेश स्थान है। पहले समाज सुधार किया। कुरीतियों से समाज को बचाया। फिर अमर लोक का संदेश दिया। जो कुछ साहिब ने कहा, वो पहले किसी ने नहीं बोला था। उन्होंने संतों का सृजन किया। जब वो संसार से गये तो उनका शरीर नहीं मिला। केवल कमल के फूल मिले। वो सबके थे। हिंदुओं ने वो लेकर समाधि बना दी और मुसलमानों ने मजार। मगहर में आज भी इसका सबूत है। कबीर साहिब की नकल की गयी। आज सगुण वाले भी उनकी वाणी ले रहे हैं। निर्गुण वाले भी। योगी भी उनकी बात करते हैं। नकल हो गयी। कुछ कहते हैं कि हमारे गुरु का भी शरीर नहीं मिला। कबीर साहिब ने सार नाम का संदेश दिया। कुछ सार नाम की नकल करने लग गये। पर सार नाम कहने सुनने
में नहीं आता है। वो गुप्त है। सार नाम केवल सद्गुरु के पास है। सद्गुरु वो है, जो अमर लोक पहुँचा। कबीर साहिब जैसा व्यक्तित्व लेकर आजतक संसार में कोई नहीं आया और न आयेगा। मैंने उस पत्रकार को कहा कि इसलिए मैं केवल कबीर साहिब को लेकर चल रहा हूँ।