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शेख आशिक ने कश्मीरी हस्तशिल्प उद्योग की रक्षा के लिए नकली व मशीन-निर्मित कालीनों पर तत्काल कार्रवाई की मांग की

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श्रीनगर, 22 जुलाई 2025 — इरफ़ान गनी भट कश्मीर के प्रसिद्ध उद्योगपति और कालीन निर्यात संवर्धन परिषद व भारतीय रेशम निर्यात संवर्धन परिषद के बोर्ड सदस्य शेख आशिक ने श्रीनगर में आयोजित एक महत्वपूर्ण प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कश्मीरी हस्तशिल्प उद्योग को बचाने के लिए सरकार और संबंधित एजेंसियों से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की।

उन्होंने नकली और मशीन-निर्मित कालीनों की बढ़ती बिक्री पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि ये कालीन असली कश्मीरी हस्तनिर्मित उत्पादों के रूप में बाजार में बेचे जा रहे हैं, जिससे न केवल कश्मीर की पारंपरिक शिल्पकला की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंच रहा है, बल्कि हज़ारों स्थानीय कारीगरों की आजीविका भी खतरे में पड़ गई है।

शेख आशिक ने आरोप लगाया कि कुछ व्यापारी और खुदरा विक्रेता अपने शोरूमों में मशीन-निर्मित कालीनों को कश्मीरी हस्तनिर्मित कालीनों के साथ मिलाकर बेच रहे हैं। इनमें कई कालीन ईरान और तुर्की जैसे देशों से आयात किए गए होते हैं। उन्होंने कहा, “एक हस्तनिर्मित कालीन एक कारीगर के समर्पण और महीनों की मेहनत का परिणाम होता है, जबकि मशीन से बना कालीन एक दिन में तैयार हो जाता है। यह असंतुलन पारंपरिक कारीगरों को बेरोज़गारी की ओर धकेल रहा है।”

उन्होंने सरकारी तंत्र की धीमी प्रतिक्रिया पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि अक्सर जब तक उपभोक्ताओं को भ्रमित किया जा चुका होता है, तब तक प्रशासनिक कार्रवाई होती है। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि अब केवल प्रतिक्रियात्मक नहीं, बल्कि सक्रिय प्रवर्तन की आवश्यकता है। उन्होंने मांग की कि:

हस्तशिल्प दुकानों से मशीन-निर्मित उत्पादों को तत्काल हटाया जाए

जीआई टैग प्रणाली को सख्ती से लागू किया जाए

उत्पादों की पहचान और पृथक्करण के लिए सख्त मानक तय किए जाएं

गलत लेबलिंग या भ्रामक बिक्री करने वालों पर कठोर दंड लगाया जाए

इस अवसर पर मीरास के अध्यक्ष और प्रतिष्ठित निर्माता गुलाम नबी डार ने भी मंच साझा किया और वरिष्ठ कारीगरों की बदहाल स्थिति की ओर ध्यान खींचा। उन्होंने कहा कि सरकार को हस्तनिर्मित और मशीन-निर्मित कालीनों को अलग-अलग बेचे जाने के लिए स्पष्ट नीति बनानी चाहिए।

प्रेस वार्ता के अंत में शेख आशिक ने कहा, “यह लड़ाई सिर्फ रोज़गार की नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक विरासत और वैश्विक पहचान की रक्षा की भी है। अब और देरी नहीं होनी चाहिए। उद्योग से जुड़े सभी हितधारक कश्मीर की इस गौरवपूर्ण कला को बचाने के लिए सरकार के साथ हरसंभव सहयोग को तैयार हैं।”

 

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