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धोलिया जट्टा में वर्षों से बंद पड़ा प्राइमरी स्कूल, ग्रामीणों ने शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर उठाए गंभीर सवाल

सबका जम्मू कश्मीर (राज कुमार)
मढ़ीन, 23 जुलाई,जहां एक ओर सरकार हर बच्चे को शिक्षा से जोड़ने के लिए योजनाएं चला रही है, वहीं कठुआ जिले की तहसील मढ़ीन के अंतर्गत आने वाले गांव धोलिया जट्टा में स्थित सरकारी प्राइमरी स्कूल कई वर्षों से बंद पड़ा है। इससे स्थानीय लोगों में भारी नाराजगी है और उन्होंने शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर भी गंभीर सवाल खड़े किए हैं।
गांव धोलिया जट्टा में लगभग 500 से 600 घर हैं, इसके बावजूद वहां के बच्चों को शिक्षा के लिए 2 किलोमीटर दूर स्थित स्कूलों में जाना पड़ता है। ग्रामीणों का कहना है कि इतनी बड़ी आबादी के बावजूद यदि गांव में एक भी कार्यरत प्राथमिक विद्यालय न हो, तो यह सरकार की शिक्षा नीति और शिक्षा विभाग की संवेदनहीनता को दर्शाता है।
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स्थानीय निवासी बलकार सिंह और मखन सिंह ने बताया कि पहले स्कूल में 10 से 15 बच्चे पढ़ते थे और धीरे-धीरे संख्या में बढ़ोतरी भी हुई थी, लेकिन फिर भी स्कूल को बंद कर दिया गया। उन्होंने कहा, “किसी ठोस कारण के बिना स्कूल को बंद कर दिया गया और आज तक हमें यह नहीं बताया गया कि ऐसा क्यों हुआ।”
बलकार सिंह ने चेतावनी देते हुए कहा, “अगर समय रहते हमारे बच्चों को शिक्षा नहीं मिली, तो वे नशे और गलत रास्तों की ओर चले जाएंगे। सरकार बार-बार शिक्षा को प्राथमिकता देने की बात करती है, लेकिन जमीनी हकीकत इसके ठीक उलट है।”
उन्होंने प्रशासन की कार्यशैली पर भी सवाल उठाते हुए कहा, “अधिकारी सिर्फ दफ्तरों में बैठकर योजनाएं बनाते हैं, लेकिन जमीनी सच्चाई से पूरी तरह अनजान हैं। कोई भी अधिकारी खुद मौके पर आकर यह नहीं देखता कि गांव में क्या हालात हैं।”
इस संबंध में जब जोनल शिक्षा अधिकारी मढ़ीन, अशोक कुमार से बात की गई तो उन्होंने बताया कि, “धोलिया जट्टा का स्कूल कम नामांकन के कारण बंद किया गया था और इसे गवर्नमेंट गर्ल्स प्राइमरी स्कूल में मर्ज कर दिया गया है, ताकि बच्चों की शिक्षा बाधित न हो।”
हालांकि, ग्रामीणों की मांग है कि गांव में पुनः स्कूल खोला जाए और नियमित शिक्षकों की तैनाती की जाए ताकि बच्चों को अपने ही गांव में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल सके।
ग्रामीणों का स्पष्ट कहना है कि सरकार यदि सच में शिक्षा को लेकर गंभीर है, तो उसे केवल नीतियां बनाने से आगे बढ़कर, गांव की जमीनी जरूरतों को समझना होगा और शिक्षा के बुनियादी ढांचे को फिर से सशक्त करना होगा।