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जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ का जन्म एवं तप कल्याणक भक्ति पूर्वक मनाया

अनुज श्रीवास्तव/रंजीत सिन्हा
बिहार/पटना। बुधवार को पटना के मुरादपुर,मीठापुर,कदमकुआं, कमलदह मंदिर में जैन धर्मावलंबियों ने जैन धर्म के पहले तीर्थंकर भगवान आदिनाथ का जन्म एवं तप कल्याणक श्रद्धापूर्वक भक्तिमय तरीके से मनाया। श्रद्धालुओं ने भगवान का अभिषेक किया तथा शांतिधारा की। तत्पश्चात अष्ट द्रव्यों से पूजा आराधना कर कल्याणक दिवस का अर्ध्य चढ़ाया। आज की पूजा में बिहार स्टेट दिगम्बर जैन तीर्थ क्षेत्र कमिटी के सचिव पराग जैन, सोनू कुमार जैन, अतुल जैन,राहुल जैन,आर्यन जैन सहित काफी अधिक संख्या में श्रद्धालुओं भाग लिया।
प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ
जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ का जन्म चैत्र कृष्ण नौवीं के दिन सूर्योदय के समय हुआ। उन्हें ऋषभनाथ भी कहा जाता है। उन्हें जन्म से ही सम्पूर्ण शास्त्रों का ज्ञान था। वे समस्त कलाओं के ज्ञाता और सरस्वती के स्वामी थे। युवा होने पर कच्छ और महाकच्‍छ की दो बहनों यशस्वती (या नंदा) और सुनंदा से ऋषभनाथ का विवाह हुआ।
नंदा ने भरत को जन्म दिया, जो आगे चलकर चक्रवर्ती सम्राट बने। भगवान ऋषभनाथ ने ही विवाह-संस्था की शुरुआत की और प्रजा को पहले-पहले असि (सैनिक कार्य), मसि (लेखन कार्य), कृषि (खेती), विद्या, शिल्प (विविध वस्तुओं का निर्माण) और वाणिज्य-व्यापार के लिए प्रेरित किया। उनका सूत्र वाक्य था- ‘कृषि करो या ऋषि बनो।’
ऋषभनाथ ने हजारों वर्षों तक सुखपूर्वक राज्य किया फिर राज्य को अपने पु‍त्रों में विभाजित करके दिगम्बर तपस्वी बन गए। उनके साथ सैकड़ों लोगों ने भी उनका अनुसरण किया।
जैन मान्यता है कि पूर्णता प्राप्त करने से पूर्व तक तीर्थंकर मौन रहते हैं। अत: आदिनाथ को एक वर्ष तक भूखे रहना पड़ा। इसके बाद वे अपने पौत्र श्रेयांश के राज्य हस्तिनापुर पहुंचे। श्रेयांस ने उन्हें गन्ने का रस भेंट किया जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। वह दिन आज भी ‘अक्षय तृतीया’ के नाम से प्रसिद्ध है।
हस्तिनापुर में आज भी जैन धर्मावलंबी इस दिन गन्ने का रस पीकर अपना उपवास तोड़ते हैं। इस प्रकार, एक हजार वर्ष तक कठोर तप करके ऋषभनाथ को कैवल्य ज्ञान (भूत, भविष्य और वर्तमान का संपूर्ण ज्ञान) प्राप्त हुआ। वे जिनेन्द्र बन गए।

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