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कबीर साहिब न सगुण उपासक थे, न निर्गुण उपासक थे:-सद्गुरु श्री मधुपरमहंस जी महाराज

जम्मू/साम्बा/राजरडी।
साहिब बंदगी के सद्गुरु श्री मधुपरमहंस जी महाराज ने आज सतवारी, जम्मू में सत्संग के दौरान अपने प्रवचनों की अमृत वर्षा से संगत को निहाल करते हुए कहा कि बड़े बड़े बुद्धिजीवी भी कबीर साहिब की निर्गुण उपासक मानते हैं। पर कबीर साहिब न सगुण उपासक थे, न निर्गुण उपासक थे। वो दोनों से परे थे। पूरी दुनिया मन की मुरीद है।

मन जो भी चाह रहा है, वो ही करवा रहा है। हरेक आदमी मन की तरंगों के अनुसार काम करता है। मन ने पूरे संसार को भ्रमित करके रखा है। सब निराकार तक की बात कर रहे हैं। आगे का भेद कोई नहीं जानता है। साहिब धर्मदास से यही बात तो कह रहे हैं कि आप जो भक्ति बोल रहे हैं, वो न कभी सुनी, न पढ़ी है। सब धर्म शास्त्र, सब ऋषि, मुनि साकार, निराकार की बात कह रहे हैं। पर आप कुछ अलग ही बात बोल रहे हैं।


जब आपको नाम मिला तो आपके अन्दर एक ताकत आई। अब आप समझ रहे हैं कि वो ताकत क्या चीज है।
साहिब ने अनन्त शब्दों में उस अमर लोक की बात कही है। आत्मा उस देश से आई है। फिर साहिब ने गुरु की बात कही है। साहिब ने गुरुमुख होने के लिए बोला। सगुण और निर्गुण में गुरु की इतना बड़ा महात्म नहीं है। पर संत मार्ग में बिना गुरु के बात नहीं बनेगी। नाम के लिए साहिब ने बहुत ज्यादा बोल दिया। अगर रामायण के उत्तरकांड का मंथन करेंगे तो कबीर साहिब निकल आयेंगे। साहिब ने अंतर्मुखी होने के लिए कहा। ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है, जिसपर साहिब ने नहीं बोला। साहिब ने मन पर बोला। इस मन पर कोई नहीं बोल रहा है। यही मन आपका वैरी है। पूरी दुनिया इसमें रमी हुई है।
मन आत्मा को नाना योनियों में घुमाता रहता है। पर सत्य नाम को पाकर उश देश में आत्मा चली जाती है। तब इस दुनिया में दुबारा नहीं आना होता है।

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