आशा में भावो में मैं थोड़ी पनाहों में जीती हूं
सोच में सत्कार में थोड़ी फटकार में जीती हूं
कुछ अपनो में गैरो में तो कुछ अन्यों में जीती हूं
खुद में ही छिपी में
खुद को दुनिया में तलाशती हूं
मुझ हीरे की जौहरी दुनियां है , खुद के अनुरूप तराशती है
इसकी, उसकी सबकी सोच समझ को जीती हूं
कुछ करूं तो सबकी नजर में आती हूं
मैं कुछ करूं तो सबकी नजर से करती हूं
सुरक्षा में भी खुद को तलाशती हूं
कुछ करने का मन हो
तो भी बंदिशों में जीती हूं
खुद की समझ है
पर सबकी समझ से जीती हूं
मैं लड़की हूं साहब
आजाद भारत में पैदा होकर भी
केवल सलाखों में जीती हूं ।।
:- सुरक्षा चौहान