
विशेष
हर वर्ष आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरुपूर्णिमा का पर्व पूरे देश में श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। यह दिन गुरु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का पावन अवसर होता है। भारत की प्राचीन परंपरा में गुरु को भगवान से भी ऊपर स्थान दिया गया है।
जैसा कि कहा गया है—
“गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय।।”
यह पर्व महर्षि वेदव्यास जी की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है, जिन्होंने महाभारत जैसे महाकाव्य की रचना की और वेदों का संकलन कर उन्हें सहज रूप से मानव समाज के लिए उपलब्ध कराया। इसलिए इस दिन को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है।
🔹 गुरु का महत्व
गुरु ही वह दीपक है, जो अज्ञान रूपी अंधकार को मिटाकर जीवन में प्रकाश लाता है। वह मार्गदर्शक होता है, जो व्यक्ति को आत्मबोध, नैतिकता और सच्चे जीवन की ओर अग्रसर करता है। केवल शैक्षणिक ज्ञान ही नहीं, बल्कि गुरु संस्कार, चरित्र और आत्मज्ञान का भी संचार करता है।
🔹 आज के संदर्भ में गुरु
आज के युग में गुरु सिर्फ पाठशाला तक सीमित नहीं हैं। माता-पिता, शिक्षक, जीवन में मार्गदर्शन देने वाले बुजुर्ग, समाज के श्रेष्ठजन और यहां तक कि जीवन की कठिनाइयाँ भी किसी न किसी रूप में गुरु बन जाती हैं। डिजिटल युग में भी सही दिशा दिखाने वाले व्यक्तित्व गुरु समान होते हैं।
🔹 गुरुपूर्णिमा की परंपरा
इस दिन शिष्य अपने गुरु के चरणों में उपस्थित होकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। पूजा, भजन, सत्संग, ध्यान और प्रवचन जैसे आयोजन होते हैं। कई स्थानों पर गंगा स्नान का विशेष महत्व होता है।
🔹 निष्कर्ष
गुरुपूर्णिमा केवल एक पर्व नहीं, बल्कि संस्कारों और कृतज्ञता का प्रतीक है। यह हमें अपने जीवन में गुरु के महत्व को पहचानने और उनके दिखाए मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।
गुरु की कृपा से ही आत्मज्ञान संभव है और जीवन में सफलता का मार्ग प्रशस्त होता है।
“जहाँ गुरु का प्रकाश है, वहाँ अंधकार टिक नहीं सकता।”