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रक्षा बंधन पर साहिब बंदगी के सद्गुरु मधुपरमहंस जी महाराज का प्रवचन: “संसार केवल मन की कल्पना है”

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राँजड़ी (जम्मू)। रक्षा बंधन के अवसर पर साहिब बंदगी के सद्गुरु मधुपरमहंस जी महाराज ने राँजड़ी स्थित आश्रम में संगत को संबोधित करते हुए कहा कि हर मनुष्य का अपना संसार है, लेकिन वास्तव में संसार का अस्तित्व नहीं है। यह केवल मन की कल्पना है, जैसा कि गुरु वशिष्ठ ने राम से कहा था।

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उन्होंने कहा कि मनुष्य जो कुछ देखता और महसूस करता है, वह चित्त की धारणाओं और संस्कारों का परिणाम है। जैसे बालक जन्म के बाद माता-पिता और समाज से वाणी, आचरण और व्यवहार सीखता है, वैसे ही संसार का स्वरूप भी मन में अंकित होता जाता है।

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महाराज ने उदाहरण देते हुए कहा कि मरुस्थल में दूर से धरती और आकाश का मिलना एक भ्रम है, जैसे मृग मरीचिका में हिरण पानी की तलाश में दौड़ता है लेकिन अंत में प्यासा मर जाता है। संसार के सुख भी इसी तरह क्षणिक और मृग मरीचिका जैसे हैं। आत्मा स्वयं आनंद का स्रोत है, किंतु अज्ञान के कारण मनुष्य मोह में फंस जाता है।

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उन्होंने कहा कि ज्ञानी व्यक्ति जानता है कि संसार की उत्पत्ति का कोई वास्तविक आधार नहीं है। यह नीले आकाश की तरह प्रतीत होता है, जो वास्तव में नीला नहीं होता। यह नींद के सपने जैसा है, जिसमें सुख और दुख दोनों ही भ्रम हैं।

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महाराज ने स्पष्ट किया कि बंधन का मूल कारण मन है। जब मन नियंत्रित हो जाता है, तो जगत का आभास समाप्त हो जाता है और आत्मा का वास्तविक स्वरूप प्रकट होता है। जैसे समुद्र शांत रहता है लेकिन हवा के कारण लहरें उठती हैं, वैसे ही आत्मा शांत है और मन के कारण ही संसार का अनुभव होता है। आत्मज्ञानी व्यक्ति संसार के पदार्थों में आसक्त नहीं होता और संकल्प-विकल्प से परे रहकर आत्मा में स्थिर हो जाता है।

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