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जब कर्तव्य बन जाए मौत की सज़ा, इंसानियत की पुकार

स्कूल जाते समय बाढ़ ग्रस्त नाले में गिरकर दो शिक्षकों की मौत; शिक्षा जगत ने उठाई प्रशासनिक सुधार की मांग

जम्मू/राजौरी , (अनिल भारद्वाज)

बुधवार शिक्षा जगत के लिए एक बेहद दुखद दिन रहा, जब दो समर्पित शिक्षक स्कूल जाते समय बाढ़ से उफनते नाले में गिरकर अपनी जान गंवा बैठे। इस दर्दनाक हादसे ने एक बार फिर प्रशासनिक सुधारों की ज़रूरत को ज़ोरदार तरीके से सामने लाया है, जिससे शिक्षकों की सुरक्षा को कागजी औपचारिकताओं से ऊपर रखा जा सके।
रहबर ए तालीम टीचर फोरम के लीडर अफताब तांत्रे ने नम आंखों में कहा घर से स्कूल जा रहे और बाढ़ के नाले में बह कर जान जान गवाने वाले ये शिक्षक सिर्फ सरकारी आंकड़ों में दर्ज नाम नहीं थे, ये किसी के प्यारे बेटे थे, जीवनसाथी थे, और बच्चों के लिए आदर्श अभिभावक। उनके परिवार आज उस खालीपन से जूझ रहे हैं जिसे कोई वादा या मुआवज़ा कभी नहीं भर सकता।
यह हादसा कोई अलग घटना नहीं है, बल्कि एक व्यापक प्रणालीगत विफलता का संकेत है ऐसी प्रणाली जो शिक्षकों की जान की कीमत पर उपस्थिति रजिस्टर को प्राथमिकता देती है। यह बार-बार की चेतावनियों के बावजूद बरती जा रही प्रशासनिक लापरवाही को उजागर करता है।
प्रशासन जानता है कि कई स्कूल दूरदराज और आपदा-प्रवण क्षेत्रों में स्थित हैं, जहाँ शिक्षकों को रोज़ाना नदियाँ पार करनी होती हैं, भूस्खलन वाले रास्तों से गुजरना पड़ता है, और चरम मौसम का सामना करना पड़ता है इसके बावजूद निर्णय लेने में हो रही देरी को “चौंकाने वाली उदासीनता” बताया जा रहा है।
आज के हादसे में स्कूल बंद करने का आदेश सिर्फ 30 मिनट पहले जारी किया गया—तब तक ज़्यादातर शिक्षक अपने घरों से निकल चुके थे, कुछ के लिए यह उनकी ज़िंदगी की अंतिम यात्रा बन गई। और ज्यादातर बच्चे बारिश में जान जोखिम में डाल स्कूलों मपहुंच चुके थे खराब मौसम में स्कूल बंद रखने का आदेश तब आया।
“यह पहली बार नहीं है जब इतनी बेरुखी दिखाई गई हो। जब समय पर अलर्ट और स्कूल बंदी से जान बच सकती है, तो फैसले खतरे के बाद ही क्यों होते हैं?”
यह घटना एक बार फिर उन दबावों को उजागर करती है जो शिक्षक रोज़ झेलते हैं। उन्हें हर दिन तीन अलग-अलग तरीकों से उपस्थिति दर्ज करनी पड़ती है पेपर, ऑनलाइन और बायोमेट्रिक जिससे उनके ईमान पर संदेह का वातावरण बनता जा रहा है।
“जैसे उनकी उपस्थिति और ईमानदारी हर पल शक के घेरे में हो,” एक शिक्षा कार्यकर्ता ने कहा। “जैसे उनके पैरों की कीचड़, टूटी सड़कों पर तय की गई दूरियां, और रोज़ की कुर्बानियाँ काफी नहीं हैं।”

और अब, शिक्षकों की तनख्वाह भी (JK Attendance App) जम्मू कश्मीर अटेंडेंस ऐप
से जोड़ दी गई है , जबकि यह नियम सिर्फ शिक्षा विभाग पर लागू है। यह भेदभावपूर्ण रवैया अन्य विभागों की तुलना में शिक्षकों के साथ दोहरे मापदंड का संकेत देता है।
शिक्षा समुदाय का कहना है कि यह मामला सिर्फ नीतियों और नियमों का नहीं है, बल्कि यह मानवीय गरिमा, कार्यस्थल की सुरक्षा, और शिक्षकों को “ट्रैकिंग आईडी” के बजाय इंसान के रूप में देखने की मांग का सवाल है।
शिक्षकों ने हमेशा हर तूफान—चाहे वो मौसम हो या व्यवस्था का डटकर सामना किया है, आतंक बाद का सामना कर बन्द स्कूल खोले फिर भी उनकी निष्ठा पर सवाल उठते हैं, जान को खतरे में डाला जाता है, और उनकी कुर्बानियों को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है।
यह किसी व्यवस्था के खिलाफ विद्रोह नहीं है, बल्कि एक संवेदनशील अपील है ऐसी नीति बनाने की जो केवल नियमों पर नहीं, संवेदना पर आधारित हो।
इस हादसे के बाद शिक्षा जगत ने ज़ोरदार मांग की है:
– स्कूल बंदी के दिशा-निर्देशों की व्यापक समीक्षा, आपातकालीन चेतावनी प्रणाली का तत्काल कार्यान्वयन, बेहतर संचार प्रणाली, और ऐसी उपस्थिति प्रणाली में बदलाव जो लाभ से अधिक बोझ बन चुकी है
जब पूरा शिक्षा समुदाय इस दुखद और टाली जा सकने वाली मौत पर शोक मना रहा है, तो एक ही आवाज़ उठ रही है।
“भगवान करे, यह अंतिम बार हो जब हम लापरवाही के कारण किसी शिक्षक को खोएं। नीतियाँ सिर्फ लागू करने के लिए नहीं, संवेदना से प्रेरित हों।
पहले उन्हें ज़िंदा रहने दो, फिर उन्हें पढ़ाने दो।
हर शिक्षक के लिए एक संदेश: पहले जीवन, फिर कर्तव्य।”

जम्मू कश्मीर के रामनगर में नाला पार करते समय पानी में बह जाने से जान गवाने वाले शिक्षकों का अफसोस सब को हैं। जिसने सुना उसी की आंखे नम हो गई।
दोनों मृतक शिक्षक संजय कुमार और जगदेव सिंह जो ड्यूटी प्रशिक्षण के लिए डाइट कुद जा रहे थे उनकी पहचान कर पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है।

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