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सद्गुरु श्री मधुपरमहंस जी महाराज के प्रवचनों से राँजड़ी में गूंजा आध्यात्मिक संदेश, नाम की महिमा पर दिया विशेष जोर

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राँजड़ी/जम्मू, 27 जुलाई 2025: साहिब बंदगी के सद्गुरु श्री मधुपरमहंस जी महाराज ने आज राँजड़ी में आयोजित सत्संग समारोह में अपने आध्यात्मिक प्रवचनों की अमृत वर्षा करते हुए श्रद्धालुओं को आत्मज्ञान का मार्ग दिखाया। उन्होंने कहा कि चाहे करोड़ों सूर्य क्यों न उदय हो जाएँ, लेकिन जीवन में वास्तविक प्रकाश केवल सद्गुरु की कृपा से ही संभव है।

सद्गुरु जी ने कहा कि नाम की शक्ति से जीवन में अभूतपूर्व परिवर्तन आता है। उन्होंने संगत को संबोधित करते हुए कहा, “यदि आप अपने पहले के जीवन को देखेंगे, तो लगेगा जैसे वह जीवन एक भ्रम था। लेकिन अब नाम ने आपको नया जीवन दे दिया है।”

अपने प्रवचनों में उन्होंने सृष्टि की रचना और मनुष्य जीवन की विविधता पर गहराई से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि संसार की रचना एक ही प्रकार से हुई है, सभी को एक जैसी भूख लगती है, पर फिर भी सभी मनुष्य एक जैसे नहीं दिखते। किसी में दया है, किसी में क्षमा, तो किसी में संतोष। यह भिन्नता व्यक्ति के दृष्टिकोण और पिछले कर्मों के अनुसार होती है।

सद्गुरु जी ने कहा कि मानव जीवन की प्रकृति भौगोलिक परिस्थितियों, खान-पान और उपासना पद्धति से प्रभावित होती है। उन्होंने समझाया कि कोई शांत है तो कोई क्रोधित, यह सब पूर्व जन्मों के संस्कारों का परिणाम है। उन्होंने कहा कि जैसे कोई पटकथा लेखक पहले स्क्रिप्ट लिखता है, फिर उसके पात्र चुनता है, वैसे ही यह संसार भी एक निर्धारित कर्मचक्र का परिणाम है।

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साहिब जी ने धर्मदास जी के संवादों का उल्लेख करते हुए कहा कि सभी जीवधारियों की प्रकृति उनके पूर्वजन्म के कर्मों के अनुसार होती है। शेर, सियार या गिद्ध जैसी योनियों से आने वाले प्राणी अक्सर उग्र स्वभाव के होते हैं, क्योंकि उनके साथ पिछली योनियों के संस्कार जुड़े रहते हैं।

सद्गुरु जी ने जोर देकर कहा कि यह संसार “काल का देश” है, जहां जन्म और मृत्यु का चक्र चलता रहता है। लेकिन संतों ने आत्मा को अमर लोक की ओर जाने का मार्ग दिखाया है। उन्होंने कहा, “हे हंसा! आत्मा के उस अमर लोक में चलो, जहाँ न काल है और न ही मृत्यु।”

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उन्होंने बताया कि मनुष्य अपने साथ कम से कम सौ जन्मों का लेखा-जोखा लेकर आता है, और रिश्ते-नाते तक पिछले कर्मों का परिणाम हैं। उन्होंने कहा, “हमारी आत्मा का इन सबसे कोई संबंध नहीं है। आत्मा शुद्ध है, स्वतंत्र है, और उसका लक्ष्य अमरता है।”

अपने प्रवचनों के अंत में सद्गुरु जी ने नाम की महिमा पर विशेष बल देते हुए कहा कि नाम की शक्ति से व्यक्ति का स्वभाव तक बदल जाता है। “जो पहले खूँखार था, वह अब शांत और सरल हो गया है। सद्गुरु नाम के माध्यम से पिछले जन्मों की मैल को धो देता है।”

सत्संग में भारी संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया और सद्गुरु जी के वचनों को आत्मसात करते हुए उनके चरणों में नतमस्तक हुए। पूरे वातावरण में आध्यात्मिक ऊर्जा और श्रद्धा का भाव देखने को मिला।

 

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