
ग़ाज़ियाबाद का विजय नगर क्षेत्र पिछले पाँच वर्षों में जिस तीव्रता से शहरीकरण और अनियंत्रित जल दोहन का शिकार हुआ है, वह उत्तर प्रदेश के जल संकट की भयावह स्थिति की बानगी मात्र है। यह संकट केवल सूखते हुए हैंडपंप या गिरते बोरवेल तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह अब सामाजिक, पर्यावरणीय और प्रशासनिक विफलता का आईना बन चुका है।
गहराता जल संकट: नीचे जाती ज़मीन, सूखते सपने
विजय नगर और प्रताप विहार जैसे शहरी क्षेत्रों में भूजल स्तर पिछले 5 वर्षों में खतरनाक स्तर तक गिर चुका है। इसका प्रमुख कारण है – अबैध आर.ओ. प्लांट्स। अनुमान के अनुसार, ग़ाज़ियाबाद में लगभग 2500 से अधिक अवैध जल शोधन संयंत्र (RO plants) बिना किसी वैध NOC के संचालित हो रहे हैं। ये संयंत्र गली-गली में भूजल का बेहिसाब दोहन कर रहे हैं और इसे बड़े पैमाने पर मोहन नगर इंडस्ट्री एरिया में टैंकरों द्वारा बेचा जा रहा है।
यह एक संगठित जल माफ़िया तंत्र बन चुका है, जो उत्तर प्रदेश के ‘जलदोहन निषेध अधिनियम’ की सरेआम धज्जियाँ उड़ा रहा है। सरकारी विभागों, विशेषकर लघु सिंचाई विभाग और ग़ज़ियाबाद जिला प्रशासन (CDO), को पिछले तीन वर्षों से शिकायतें और ज्ञापन भेजे जा चुके हैं, किंतु कार्रवाई नगण्य रही है।
खोड़ा से विजय नगर तक: दोहराया जा रहा है विनाश का मॉडल
खोड़ा कॉलोनी का उदाहरण सबके सामने है, जहाँ जल स्तर 150 फीट से नीचे चला गया। अब वही संकट विजय नगर और प्रताप विहार में दस्तक दे चुका है। जैसे-जैसे भूजल स्तर नीचे गया, वहाँ गड्ढों का निर्माण, ज़मीन धँसना और भवनों की नींव पर खतरा मंडराने लगा है। यह प्रकृति से आँख मिचोली करने का भयावह परिणाम है।
डेयरियों से उपजा नया संकट: गोबर से जलदोहन और सीवर सीज
विजय नगर क्षेत्र में एक नया संकट उभर रहा है – अबैध डेयरियों द्वारा गोबर और गंदगी को समर सिबिल (summer sewers) से सीधे नालियों में बहाना। पहले जहाँ गोबर का प्रयोग खाद, उपलों और जैविक खेती में होता था, वहीं अब उसे एक अपशिष्ट के रूप में नष्ट किया जा रहा है।
इससे न केवल भूजल में प्रदूषण हो रहा है, बल्कि नालियों और सीवर लाइनों का जाम भी आम हो गया है। इससे संक्रामक बीमारियाँ फैलने का खतरा, गली-मुहल्लों में दुर्गंध और पानी की निकासी रुकने जैसी समस्याएँ पैदा हो रही हैं।
प्रशासन की निष्क्रियता: एक खामोश सहमति या अनदेखी?
ग़ाज़ियाबाद प्रशासन और संबंधित विभागों की लापरवाही अब सवालों के घेरे में है।
• क्या अबैध आर.ओ. प्लांट्स से उगाही हो रही है? • क्या डेयरियों को नियमों से छूट मिली हुई है? • क्या लघु सिंचाई विभाग और नगर निगम ने कभी कोई संयुक्त निरीक्षण किया? • पिछले तीन वर्षों में इस दिशा में न कोई बड़ा निरीक्षण हुआ, न ही कोई कठोर दंड। इससे जल माफिया और डेरी संचालकों के हौसले और बुलंद हुए हैं।
जलदोहन पर उत्तर प्रदेश का कानून: क्या कहता है “उत्तर प्रदेश भूजल (प्रबंधन और विनियमन) अधिनियम, 2019”?
उत्तर प्रदेश सरकार ने भूजल के अनियंत्रित दोहन को रोकने के लिए वर्ष 2019 में ‘उत्तर प्रदेश भूजल (प्रबंधन और विनियमन) अधिनियम’ पारित किया था। इस कानून का उद्देश्य जल संसाधनों का सतत प्रबंधन और अवैध जल दोहन पर रोक लगाना है।
मुख्य प्रावधान:
1. NOC (अनापत्ति प्रमाणपत्र) के बिना कोई भी व्यक्ति/संस्थान भूजल का दोहन नहीं कर सकता।
2. जलदोहन करने वाले संस्थानों को पंजीकरण अनिवार्य है, जिसमें खपत की मात्रा, स्रोत और उद्देश्य घोषित करना होता है।
3. गैरकानूनी जल दोहन करने पर ₹2 लाख तक का जुर्माना और 6 महीने तक की जेल हो सकती है।
4. भूजल को व्यवसायिक रूप से बेचने के लिए विशेष अनुमति आवश्यक है।
5. स्थानीय प्रशासन, ग्राम पंचायत, नगर निकाय और जल बोर्ड को भूजल स्तर की निगरानी और कार्रवाई का अधिकार है।
वर्तमान स्थिति:
ग़ाज़ियाबाद के सिटी जोन एवं विजय नगर जैसे क्षेत्रों में इन प्रावधानों की खुलेआम अवहेलना की जा रही है। NOC के बिना सैकड़ो आर. ओ. प्लांट्स का चलना, डेयरियों से सीवर में प्रदूषित गोबर का बहना, और भूजल के व्यावसायिक व्यापार का चलन – सब कुछ इस अधिनियम की सीधी अवमानना है।
समाधान और सुझाव: सख्त कानून, सशक्त कार्रवाई की दरकार
1. सभी आर.ओ. प्लांट्स का सर्वे कर उनको नोटिस एवं NOC, जल स्रोत और क्षमता की जानकारी ली जाए।
2. बिना अनुमति चल रहे संयंत्रों पर सीलिंग, FIR और फाइन लगाया जाए।
3. डेयरियों को गोबर प्रबंधन हेतु जैविक खाद संयंत्र लगाने का निर्देश दिया जाए।
4. जलदोहन पर निगरानी के लिए वार्ड स्तर पर टास्क फोर्स का गठन किया जाए।
5. पब्लिक को RTI व सोशल मीडिया के माध्यम से भागीदारी के लिए प्रेरित किया जाए।
स्थायी समाधान: नगर निगम की भूमिका और तकनीकी विकल्प
जल संकट से निपटने के लिए एक प्रभावी समाधान यह हो सकता है कि नगर निगम ग़ाज़ियाबाद प्रत्येक वार्ड में सरकारी आर.ओ. वाटर डिस्पेंसर मशीनें स्थापित करे, जहाँ ₹5 में 20 लीटर शुद्ध पानी आम जनता को उपलब्ध हो। इससे दो लाभ होंगे:
जल माफ़ियाओं की अवैध दुकानें स्वतः बंद होंगी, क्योंकि लोगों को सस्ती और वैध सेवा मिलेगी।
इन डिस्पेंसर मशीनों से जुड़े RO प्लांट्स में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाकर नालियों में बहता हुआ बहुमूल्य पानी भी पुनः संरक्षित किया जा सकता है।
जल एक जीवनदायिनी शक्ति है, लेकिन गाज़ियाबाद में यह अब एक व्यापारिक वस्तु बन गई है – जिसे चूसकर निकाला जा रहा है, बेचा जा रहा है और फिर उसे ही दूषित कर वापिस ज़मीन में धकेला जा रहा है। यदि अब भी सजगता नहीं दिखाई गई तो वह दिन दूर नहीं जब विजय नगर भी रेगिस्तान का नमूना बन जाएगा – *जहाँ न धरती रहेगी, न जल, और न ही जीवन।*
लेखक: रविंद्र आर्य
(भारतीय लोकसंस्कृति, इतिहास और सामरिक चेतना के स्वतंत्र विश्लेषक पत्रकार)