धोखे की संस्कृति और सांस्कृतिक सजगता: पाकिस्तान की फ़ितरत पर मालिनी अवस्थी के विचार
(भारतीय लोकसंस्कृति, इतिहास और सामरिक चेतना के स्वतंत्र विश्लेषक पत्रकार)

लेखक: रविंद्र आर्य
“धोखे से वार” — यह वाक्य केवल आज की परिस्थिति नहीं, बल्कि उस ऐतिहासिक प्रवृत्ति का स्मरण है जो पाकिस्तान की रगों में रची-बसी है। भारत पर छद्म युद्ध, आतंकवाद, और सीमा पार से प्रायोजित षड्यंत्र इसकी स्थायी नीति रहे हैं। आज जबकि भारतीय सेना और सुरक्षा एजेंसियाँ पूर्ण सजगता में हैं, सांस्कृतिक मोर्चे पर भी संयम और विवेक की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक है।
लोकसंस्कृति की मर्मज्ञ विदुषी मालिनी अवस्थी प्रायः अपने वक्तव्यों में इस बात पर बल देती रही हैं कि राष्ट्रीय संकट के समय सांस्कृतिक एकता और भावनात्मक विवेक सर्वोपरि होते हैं। वह कहती हैं —
“राष्ट्र जब रणक्षेत्र में हो, तब कलम, कैमरा और कथन का संयम भी एक शस्त्र होता है।”
उनकी दृष्टि में सूचना का अनावश्यक उच्छृंखल प्रसार, भ्रामक खबरों की रीच की होड़ और सनसनीखेज़ प्रस्तुतिकरण सीधे-सीधे राष्ट्रहित के विरुद्ध हैं।
अभी-अभी रक्षा मंत्रालय ने X (पूर्व ट्विटर) पर एक महत्वपूर्ण संदेश साझा किया:
“यह युद्धकाल है! संयम रखें। TRP/रीच के स्वार्थ में देश को बलि न चढ़ाइए।”
यह संदेश केवल सूचना नहीं, चेतावनी भी है — एक बर्बाद, असफल राष्ट्र सबसे अधिक घातक हो सकता है।
पाकिस्तान के लिए तुलसीदास की यह चौपाई अत्यंत उपयुक्त प्रतीत होती है:
“नवनि नीच कै अति दुखदाई।
जिमि अंकुस धनु उरग बिलाई॥”
अर्थात, नीच व्यक्ति दुर्व्यवहार करे तो कोई बात नहीं, पर यदि वह झुक जाये तो और भी सावधानी की आवश्यकता होती है।
जैसे बिल्ली, बाण, अंकुश पहले नीचे झुकते हैं, फिर घातक प्रहार करते हैं।
आज पाकिस्तान की रणनीति भी इसी ‘नीच प्रवृत्ति’ का विस्तार है। इसलिए भारत को केवल रणक्षेत्र में नहीं, अपने संचार, मीडिया और सामाजिक मनःस्थिति में भी अपार संयम और सजगता रखनी होगी।
ऐतिहासिक छल की पुनरावृत्ति और सांस्कृतिक संयम का संदेश
पाकिस्तान का विश्वासघात कोई नवीन घटना नहीं है। इसके ऐतिहासिक प्रमाण स्वयं बोलते हैं:
* 1947–48 का कश्मीर आक्रमण
पाकिस्तान ने ‘कबायली सेना’ भेजकर जम्मू-कश्मीर पर हमला किया जबकि औपचारिक तौर पर शांति वार्ता के संकेत दे रहा था।
* 1965 का ऑपरेशन जिब्राल्टर
शांति के आवरण में पाकिस्तान ने गुप्त घुसपैठ कर युद्ध छेड़ा।
* 1999 कारगिल युद्ध
जब लाहौर समझौते के बाद दुनिया को भारत-पाक शांति का भ्रम था, उसी समय पाकिस्तानी सेना ने कारगिल सेक्टर में घुसपैठ कर दी।
* 2016 उड़ी आतंकी हमला
पाकिस्तान समर्थित आतंकियों ने भारतीय सेना पर तब हमला किया जब पाकिस्तान विश्व मंचों पर ‘शांति’ का झूठा चेहरा दिखा रहा था।
इन घटनाओं ने यह स्पष्ट कर दिया कि पाकिस्तान की ‘शांति’ की पेशकश भी एक रणनीतिक छल है।
मालिनी अवस्थी का सांस्कृतिक दृष्टिकोण
मालिनी अवस्थी इस तथ्य को बार-बार रेखांकित करती रही हैं कि भारत की लोकसंस्कृति ने समय-समय पर हमें सावधान करने के संकेत दिए हैं। उनका कहना है:
“लोकगीतों की तरह सूचनाओं का भी अनुशासन हो। जो बात राष्ट्रहित में नहीं, वह न गाई जाए, न सुनाई जाए।”
उनके अनुसार, आज भारत को केवल अपने शस्त्रों पर नहीं, अपने संयम, सूचना अनुशासन और राष्ट्रीय एकता पर भी भरोसा करना होगा।
सोशल मीडिया के युग में अनजाने में भी किसी भ्रामक प्रचार या आतंक प्रेरित सूचना को बढ़ावा देना सीधे-सीधे शत्रु का साथ देना है।
इस समय भारत के प्रत्येक नागरिक से अपेक्षा है कि वह संयमित संवाद, सावधान साझेदारी और राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखे।
जैसे मालिनी अवस्थी कहती हैं:
“भारतीयता की असली शक्ति संयम और साहस के संतुलन में है। यही लोकचेतना की सीख है, यही राष्ट्ररक्षा की पुकार।”
आज जब सीमाओं पर रण हो रहा है, तब हमें अपने शब्दों, भावनाओं और सूचनाओं के मोर्चे पर भी सतर्क रहना है।
पाकिस्तान की फितरत को पहचानें, धोखे की संस्कृति से सावधान रहें, और भारतीय लोकचेतना की परंपरा के अनुरूप संयमित, सशक्त और जागरूक नागरिक बनें।
मालिनी अवस्थी जैसे सांस्कृतिक विचारकों के मार्गदर्शन से हम इस युद्ध को केवल शस्त्रों से नहीं, संस्कृति और विवेक से भी जीत सकते हैं।