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तुम्हारा निर्णय – तुम्हारा भविष्य

लघुकथा

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मुझे पता है कि कोई भी मेरी कहानी पढ़ने के लिए उत्सुक नहीं है, और न ही मेरे पास कोई सफलता की गाथा है। कई बार मैं खुद को खो चुका हूँ। दूसरे शब्दों में कहें तो हार गया हूँ, लेकिन हर बार दोगुनी ऊर्जा के साथ वापस लौटा हूँ। प्रतियोगिताएँ ऐसी ही होती है व्यक्ति, वस्तु और पहले से निधर्धारित योजनाएँ..

लेकिन क्या कोई व्यक्ति प्रतियोगिता का विषय हो सकता है?

क्या अस्तित्व, भावनाएँ, प्रेम और संवेदनाएँ किसी परीक्षा की मेज पर रखे जाने वाले अनुसंधान का विषय हो सकते हैं!?

मैं सफल न भी हो पाऊँ, तो भी मेरे लिए यह असफलता नहीं है। बल्कि यह एक नया अध्याय है, एक सीख और अनुभव। और यह अध्याय कोई और भी पढे, ताकि वह अपने जीवन को एक मजबूत आधार पर खडा कर सके।

ताकि वह सिर्फ किसी और की परीक्षा का गिनींपिग न बन जाए।

ताकि वह कभी भी कृत्रिम प्रेम के नीचे दबकर खुद को न खो दे।

असफलता तब आती है जब आप खुद को भूल जाते हैं।

जब आप अपनी सोच, अपने सिद्धांत, अपनी शक्ति भूलकर किसी और की छाया बन जाते हैं।

जब आप खुद को उस रिश्ते में समर्पित कर देते हैं, जहाँ आप सिर्फ एक अस्थायी अध्याय होते हैं।

जीवन में एक सीमारेखा होना जरूरी है। क्योंकि जीवन में कई लोगों से मुलाकात होगी, कई अलग-अलग विचारधाराओं और सिद्धांतों से परिचय होगा।

पेशेवर जीवन ऐसा ही होता है। चाहें या न चाहें, किसी न किसी समय आपको एक टीम का हिस्सा बनना ही पडता है। इस टीम के कुछ लोग आपका ध्यान आकर्षित करेंगे।

आप उनके करीब आने के लिए उत्सुक होंगे।

कभी यह भावना में बदल जाता है, कभी दोस्ती में, कभी बंधन में…. आपकी ओर से ये रिश्ते सच्चे होते

हैं, लेकिन दूसरी ओर शायद आप सिर्फ एक अस्थायी अवसर है।

जैसे आप चाँद को अपना नहीं कह सकते, वैसे ही कुछ रिश्ते भी आपको बस दूर से चमकता हुआ प्रकाश बनाकर रखना चाहते हैं।

फिर भी हम उम्मीद रखते हैं, सोचते हैं कि ये रिश्ते गहरे हैं।

जिस उद्देश्य से कोई व्यक्ति आपको अपने पास लाता है, जब वह उद्देश्य पूरा हो जाता है, तो आप उसकी नजरों में बस एक धूल का कण बनकर रह जाते हैं। और जब आपको यह एहसास होता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।

अपना व्यक्तिगत दुख, अपनी कमजोरियाँ किसी को बताना खुशहाल लोगों की आदत नहीं होती।

अगर आप चुपचाप अपने दर्द को सहते हैं, तो कोई आपको तोड नहीं सकता। कुछ रिश्तों को पेशेवरता तक ही सीमित रखना बेहतर होता है।

कोई वरिष्ठ कभी भी आपका भाई या बडा भाई नहीं हो सकता।

‘भाई जैसा’ और ‘भाई’ इन दोनों में बहुत फर्क होता है।

भीड में एक सच्चा भाई आपको कभी अकेला नहीं छोडेगा।

लेकिन कार्यस्थल पर, जिसे आप अपना मान रहे है, क्या वह अपना काम छोड़कर आपके साथ खडा होगा?

हर इंसान एक जैसा नहीं होता, लेकिन खुद को बचाए रखना जरूरी है।

जो व्यक्ति आपकी कहानी को एक उपन्यास की तरह पढता है, वही एक दिन सार्वजनिक रूप से आपको उपहास का पात्र बना सकता है।

ये लोग अपनी जेब में प्लास्टिक की छतरी रखते हैं जिसके नीचे आप थोडी देर के लिए छिपते हैं, और बाद में समझते हैं कि यह बस एक नकली सहारा था।

अपनी निजी जदिगी को खुद तक ही सीमित रखना बेहतर होता है।

एक बार इसे खुला छोड दिया, तो यह हवा में घुलकर कहीं भी चला जाता है। आपके विश्वास को निगल जाने बालों से

सतर्क रहना जरूरी है।

पेशेवर और निजी जीवन इन दोनों के बीच फर्क करना सीखिए।

इस समाज में ऐसे लोग भी हैं, जो अगर दिल का दरवाजा खोलने देते हैं, तो शरीर को भी अपना अधिकार मानने लगते हैं।

किसी ने मुझसे एक बार कहा था, ‘अपनी खुशी के लिए दूसरों पर निर्भर मत रहो।’

यह सच है, लेकिन जब आप किसी को अपने दिल के करीब जगह देते हैं, तो वह आपके जीवन का हिस्सा बन जाता है।

गलती तब होती है, जब आप मानसिक शांति की तलाश में किसी से कांटों से भरा गुलाब स्वीकार कर लेते हैं।

आपको थोडी देर के लिए शांति मिल सकती है, लेकिन जब उपेक्षा की तीव्रता बढेगी, तो आप पूरी तरह टूट सकते हैं।

लेकिन इसका भी हल है।

अगर आप आत्मविश्वासी हैं, तो इन गलतियों से सीख लीजिए।

लहरों की चोट से रेत का घर टूट जाए, तो इसका मतलब यह नहीं कि जीवन खत्म हो गया।

अगर आप मजबूत हैं, तो फिर से खड़े हो सकते हैं।

आपका निर्णय आपके हाथ में है –

क्या आप फिर से रेत का घर बनाएंगे, या इस बार आत्मसम्मान को बनाए रखते हुए एक मजबूत किला खंडा करेंगे?

है ना?

(यहाँ ‘मैं’ सिर्फ मैं नहीं हूँ)

बबिता बरा

(लेखिका पेशे से असम पुलिस में उप-निरीक्षक)

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