जम्मू कश्मीरपुंछ/राजौरी

कश्मीर के पहाड़ों से मवेशियों संग मैदानों की और लौटने लगे गुज्जर बक्करवाल

अनिल भारद्वाज

जम्मू/राजौरी मौसम के मिजाज बदलते ही उच्च पहाड़ी ठंडे इलाकों से सफर करते हुए गुज्जर बक्करवाल (खाना बदोश) समुदाय के लोग मैदानी क्षेत्रों में पहुंचने लगे हैं। सितंबर माह के शुरू से ही इन लोगों ने उच्च पहाड़ी क्षेत्रों कश्मीर पीर पंजाल से मैदानी क्षेत्रों की ओर रुख कर लिया था। केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के कश्मीर के कुछ हिस्सों व पीर पंजाल पहाडों पर पिछले माह हुई ताजा बर्फबारी होने से और साथ ही बारिश से सर्दी ने पैर पसारना शुरू कर दिए थे, ऐतिहासिक मुगल रोड भी बारिश से भूस्खलन व बर्फबारी होने से दोनों तरफा बंद हो गया था। लेकिन अब मौसम साफ है। और छह माह के लिए भेड़ बकरियों के साथ पहाडों पर गए बक्करबाल समुदाय के लोग जिला राजौरी और जिला पुंछ के निचले मैदानी इलाकों की और रुख कर रहे हैं। दिन को जंगलों में समय बिताते हुए रात को साफ रास्ते और सड़क मार्ग से आगे बढ़ते हुए देखे जा सकते हैं। जिससे सड़कों पर जाम की समस्या भी देखी जा सकती है। बुजुर्ग व बच्चे लोग घोड़ों पर सबार होकर आगे बढ़ते हैं। मवेशियों व खुद को जंगली जानवरों के नुकसान के बचाने के लिए उनके साथ पालतू कुत्ते होते हैं।
मौसम की सर्दी शुरू होते ही करीब 40 दिन का सफर करते हुए यह लोग मैदानी क्षेत्रों में पहुंचते हैं और मार्च से पहाड़ी क्षेत्रों की ओर रुख करने लगते हैं। अपने मवेशियों के साथ सदा सफर में रहने वाले इस समुदाय के सभी सदस्य और उनके रिश्तेदार एक साथ पहाड़ों की ओर जाते हैं। वहां जगह-जगह चारे के हिसाब से पड़ाव डालते हुए मौसम के बदलते मिजाज के हिसाब से डेरे बदलते रहते हैं।

-सदियों से गुज्जर बकरवाल समुदाय भेड़, बकरियों, भैंसों को लेकर इसी तरह जीवन बसर करते आ रहे हैं

बकरबाल समुदाय के सदस्य मोहम्मद सदाम, रिशाद ने बताया कि सदियों से उनका समुदाय भेड़ बकरियों, घोड़ों को लेकर गर्मियों में पहाड़ों की ओर चला जाता है। सर्दी में मवेशियों के साथ मैदानी क्षेत्रों में आ जाते हैं। अक्सर उनके डेरे हर वर्ष एक ही स्थान पर रहते हैं। काफी संघर्ष भरा जीवन है, लेकिन उनका यह पारंपरिक काम है जिसे वह छोड़ना नहीं चाहते। इस दौरान प्रशासन का पूरा सहयोग रहता है। बकायदा गुज्जर बक्करबाल लोगों के परमिट होते हैं। अब तो मवेशियों को एक साथ से दूसरे स्थान में ले आ जाने में सरकार गाड़ियां भी देती है। पहाडों में जब हम लोग होते हैं बच्चों को मोबाइल टीचर्स बढ़ाते हैं जिन्हें सरकार वेतन देती। व भारतीय सेना द्वारा भी उनकी मदद की जाती है।

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